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________________ पांडवों का अज्ञातवास व कीचक-मरण सभी पांडव इधर-उधर भ्रमण करते-करते विराट नगर आ गये। वनवास के बारह वर्ष बीत चुके थे, अब अंतिम वर्ष अज्ञातवास का था। अतः सभी पांडव अपना वेष बदल कर यहां के नरेश विराट के यहां नौकरी करने लगे। युधिष्ठिर राजसभा के कार्यों में हाथ बंटाने लगे। भीम पाकशाला में व अर्जुन वृहनलला बन कर रनवास में नृत्य गायन सिखाने में, नकुल अश्व-रक्षण में व सहदेव गौ रक्षा में कार्य करने लगे। द्रौपदी केश विन्यास श्रृंगार हेतु दासी बन गई व शीघ्र ही विराट नरेश की महारानी सुदर्शना की विश्वास पात्र भी बन गई। एक बार सदर्शना का भाई कीचक अपनी बहन से मिलने आया। वह द्रौपदी का रूप सौंदर्य देखकर उसे चाहने लगा। द्रौपदी ने कीचक को अनेक बार समझाने का प्रयास किया व उससे यहां तक कहा कि उसके रक्षक पांच महा बलशाली गंधर्व हैं; अतः वह उससे दूर ही रहे। फिर भी कीचक नहीं माना व एक दिन अवसर पाकर द्रौपदी का हाथ पकड़ लिया। जब द्रौपदी ने कीचक की शिकायत भीम से की तब भीम ने द्रौपदी से कहा कि वह कीचक को एकांत में बुला लें। द्रौपदी ने ऐसा ही किया। कामांध कीचक ने नाट्यशाला में मिलने का प्रस्ताव रखा, जिसे द्रौपदी ने स्वीकार कर लिया। द्रौपदी ने इस योजना के बारे में भीम को बतला दिया। तब भीम वेष बदल कर रात्रि में औरतों जैसी सज्जा कर द्रौपदी की जगह स्वयं नाटयशाला में पहुँच गया। यहां जब कीचक ने द्रौपदी समझ कर भीम का हाथ थामा, तो उसे कुछ शंका हुई। तब भीम अपने असली रूप में आ गया। इसके पश्चात् भीम व कीचक के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसमें भीम ने मुष्टि प्रहार से कीचक को मार डाला। विद्युत की तरह यह समाचार कि द्रौपदी के रक्षक गंधर्व ने कीचक को मार डाला, सर्वत्र फैल गया। इसके बाद कीचक के क्रियाकर्म के समय कीचक के साथियों ने द्रौपदी को कीचक के साथ चिताग्नि में बलात डालने का प्रयास 102 - संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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