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________________ चित्रांगद के पास आए व उससे बोले कि अब तुम्हारी शिष्यत्व की परीक्षा है। कौरव अब गांगेय / भीष्म पितामह की भी आज्ञा नहीं मानते हैं। अतः तुम्हें युद्ध में सावधान रहना होगा व कौरवों को युद्ध में परास्त करना होगा। दुर्योधन अपनी सेना के साथ शीघ्र ही सहाय वन में आ पहुँचा व वहां दोनों पक्षों में घोर युद्ध होने लगा। युद्ध में दुर्योधन के कमजोर पड़ने पर दुःशासन, शल्य, विशल्य जैसे योद्धा दुर्योधन की सहायता हेतु आ गये पर विद्याधर चित्रांगद ने सभी को युद्ध में परास्त कर दिया। विद्याधर ने अपने मोहन वाण की सहायता से दुर्योधन की सेना को मूर्छित कर दिया। केवल दुर्योधन ही अमूर्छित अवस्था में रह गये। तब दुर्योधन व चित्रांगद के बीच भीषण युद्ध हुआ । चित्रांगद ने दुर्योधन का रथ नष्ट कर दिया व उसे अपने नाशपाश में बांध लिया। यह दृश्य देखकर सभी चित्रांगद के रण कौशल की प्रशंसा करने लगे। तभी दुर्योधन की पत्नी भानुमति युद्ध क्षेत्र में आकर गांगेय से अपने पति की मुक्ति की प्रार्थना करने लगी। तब गांगेय ने भानुमति से युधिष्ठिर के पास जाने को कहा। जिससे भानुमति रूदन करती हुई युधिष्ठिर के पास गई व उनसे अपने पतिदेव को मुक्त करने की प्रार्थना करने लगी। वह युधिष्ठिर से गिड़गिड़ाकर बोली- आप दाता हैं। मैं आपके सामने अपने पतिदेव की मुक्ति की भीख आपसे मांगती हूँ । भानुमति की ऐसी बातें सुनकर युधिष्ठिर को उसके ऊपर दया आ गई व उन्होंने अर्जुन को आदेश दिया कि आप शीघ्र ही विद्याधरों से दुर्योधन को छुड़ाने की व्यवस्था करो। भाई का संदेश लेकर जब अर्जुन विद्याधरों के पास पहुँचा, तो उन्होंने दुर्योधन को मुक्त करने की बात को अस्वीकार कर दिया तथा वे अपने गुरू अर्जुन से ही युद्ध को तत्पर हो गये। पर अर्जुन ने उन्हें शीघ्र ही परास्त कर दिया। तब सभी विद्याधरों ने अर्जुन की भूरि-भूरि प्रशंसा कर उनसे क्षमा मांगी व दुर्योधन को अर्जुन के हाथों में सौंप दिया। अर्जुन दुर्योधन को लेकर अपने अग्रज युधिष्ठिर के पास गये; जहां युधिष्ठिर ने उसे बंधनमुक्त कर दिया। इस उदारता के लिये दुर्योधन ने युधिष्ठिर को 100 संक्षिप्त जैन महाभारत
SR No.023325
Book TitleSankshipta Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2014
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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