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________________ १४ कल्पातीत देवः B-५ अनुत्तर देव (१) विजय, (२) वैजयंत, (३) जयंत, (४) अपराजित, (५) सर्वार्थ सिद्ध । उपरोक्त सभी देवताओंकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति, उनके भवन या विमानोकी संख्या, उनकी गति आगति ऋिद्धि, चिन्ह, संपदा आदि सभी विशेषताओंकी चर्चा कविश्रीने अनेक छंदोमें कि है। देवता और तिर्थंकरोके कल्याणकः - तिर्थंकरके पांच कल्याणक च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण । इन पंचकल्याणकांकं समय देवोकी भूमिका, उनका कार्य, उनका प्रमुदित भाव रंगाने में कविमन खुब रमा है। च्यवन : जिस रात्री में तिर्थंकरका जीव माताकी कुक्षीमें आता है, उस रात्रीको माता हाथी, बैल, सिंह, लक्ष्मी आदि चौदह महास्वप्न देखती है। देवगतिसे आनेवाला जीव हो तो तिर्थंकरकी माता वारहवा स्वप्न विमानका देखती है और नरकगतिसे आनेवाला जीव हो तो भवनका स्वप्न देखती है। जब प्रभु माताके गर्भम आते है तव अवधिज्ञानसे जानकर कुवेर तिर्यक जृंभक देवाद्वारा तिर्थंकरके यहा धन धान्य, भोजन पान आदि से खजाना परिपूर्ण कर देते है। गर्भके सुपोपणकं लिये सभी ऋतुओंको अनुकूल वना देते है। यदि मां का कोई दोहद देवो के विना पूर्ण न होता हो तो उस समय देवता आकर वह दोहला पूर्ण कराते है । जन्मः प्रभुका जन्मोत्सव ६४ इंद्र और ५६ दिक्कुमारीया अतिआनंदसे विधिवत् मनाते है । ६४ इंद्र अर्थात दस भवनपतियोके २० इंद्र, १६ व्याणव्यन्तरोके ३२ इंद्र, ज्योतिपी देवताकं २ इंद्र और वारहवे देवलोक ते देवताओके १० इंद्र । ५६ दिशाकुमारीया अर्थात् आट अधोदिशाकी, आट उर्ध्वदिशाकी, आठ-आठ पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशाकी, मध्यदिशाकी चार और विदिशाकी चार । तिर्थंकर का जन्म होनेपर इंद्रादिक उन्हे सुमेरुपर्वत पर ले जाते है और यथाविधि वंदन, पूजन, स्तुतिकर उन्हें स्वस्थान पहुंचा देते है । दीक्षा : लोकान्तिक देव तीर्थ प्रवर्तनका समय जानकर उन्हें दीक्षाकी प्रेरणा देते है । दीक्षाके समय उन्हें स्नान, वस्त्राभूषण आदिसे अलंकृतकर रत्नमय शिविकामें विटाने हैं और नगरीके बाहर जंगल या उद्यानमें देवो द्वारा वह शिविका अशोकवृक्षके नीच लायी जाती हैं। प्रभु स्वयं वस्त्राभूषणको त्यागकर लोच करते है तब इंद्र उस वालोंको ग्रहणकर मणिमय पिटारेमें रखता है और क्षीरसमुद्रमें डालता है। प्रभुका जव ग्रामनुग्राम विचरण होता है तव देवता वहांकी विषम भूमिको सम बना देते है। पारणेके समय जयकार करते हैं, देवदुंदुभि बजाते हैं अहोदानं की घोषणा करते है और साढ़े बारह करोड सोनैय्याकी आकाशसे वर्षा करते है, पांच वर्णके अचित कुल बरसाते है। कविवर्य श्री हरजसरायजीकृत 'देवरचना' + 39
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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