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________________ हैं । अर्थ-सभर शब्दों में रचित ये स्तवन भक्ति गंगा में डूबने का अनोखा आनंद प्रदान करती है। ___मारी नावली छे मझदार, तारो प्रभु एक ज छे आधार' यह स्तवन 'युवाशिविर प्रणता' प.पू. आ. श्री भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज साहेब दिन में तीन-तीन बार शिविरार्थीयों से गाने का आग्रह रखते थे । वे कहते कि यह रचना किस शुभ घडी में बनाई गई है कि इसे वार-बार गुनगुनाने का मन करता है । भक्तिगंगा : 'नवस्मरणादि आराधना' अपरनाम 'भक्तिगंगा' आ. श्री द्वारा संपादित एक विशिष्ट उपयोगी कृति है । नित्य पाठ के लिये नवस्मरण स्तोत्र के बाद इसमें ऋपिमण्डल तथा जिनपंजर आदि स्तोत्र दिये गये है । तदुपरांत भगवती पद्मावती, अंविका, सरस्वती शारदा आदि के स्तोत्र एवं स्तुतियाँ दी गई है । नवग्रह जाप और प्रार्थना तथा ९ १७ और २७ गाथाओं के ‘उवसग्गहरं स्तोत्र' दिये गये हैं । माणिभद्रवीर, गौतमस्वामीजी के छंद, रत्नाकर पच्चीसी, चरशरण पयन्ना, इत्यादि अनेक नित्य उपयोगी विषयवस्तुओं का इसमें संग्रह है । इस अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक के कई संस्करण छप चुके है। अन्य स्वरचित एवं संपादित कृतियों में 'चन्द्र-सूर्य मंडल कणिका निरुपण' (वि.सं. १९९२), 'भगवान श्री महावीर के १५ चित्रों का परिचय' (वि.सं. १९९८), 'वृहत् संग्रहणी सानुवाद के पांच परिशिष्ट' (वि.सं. २०००), 'वृहत् संग्रहणी चित्रावली ६५ चित्र, वि.सं. २०१५), 'उपाध्यायजी स्वहस्तलिखित और अन्य प्रतियों के आद्य एवं अंतिम पत्रों की ५० प्रतिकृतियों का आल्वम' (वि.सं. २०१७) 'आगमरत्न पिस्तालिशी गुजराती पद्य (वि.सं. २०२३), 'तीर्थंकर भगवान महावीर इस ग्रंथ के ३५ चित्रोंका तीन भापाओं में परिचय, १२ परिशिष्ट, १०५ प्रतीकों और ३५ रखा-पट्टियों का परिचय (वि.सं. २०२८), आदि मुख्य है। बृहत संग्रहणी सूत्र ___ यह आचार्य की श्रेप्ट अनुवादित कृति है । अनेक यंत्रो, कोप्टक तथा ६५ से अधिक स्वयं-निर्मित चित्रों एवं ७०० से अधिक पृष्टों में विस्तृत यह एक अनुपम दलदार ग्रंथ है । आगमशास्त्रों में वर्णित विविध पदार्थों का इसमें संचय-संग्रह हुआ है इसलिय 'संग्रहणी ऐसा सार्थक नाम दिया गया है । जिन-शासन में जिन साधुसाध्वियों की आगम-शास्त्र पढने की पूर्ण पात्रता न होने भी आगम का थोडा-बहुत ज्ञान प्राप्त कर सके इस हित-वुद्धि से पन्नवणा आदि आगम शास्त्रों में से कुछ पदार्थों को चुनकर आ. श्री चन्द्र ने बारहवीं शताब्दी में कुछ नई गाथाओं की रचना करके इस ग्रंथ को लिखा जिससे आगम के निर्देशानुसार दोष से बचा जा सके । यह संग्रहणी ग्रंथ प्राचीन आचार्यों द्वारा लिखित विविध गाथा-संख्या के साथ उपलव्य है । आचार्यश्री ने दीक्षा के बाद १८-१९ वर्ष की आयु में ही गुरुआज्ञा साहित्य कलारत्न श्री विजय यशोदेवसूरि + ५१७
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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