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________________ यह संदर्भ-प्रसंग के साथ स्पष्ट किया गया है। यह ग्रन्थ मात्र जैन साहित्य संबंधी व्याख्याएं ही प्रस्तुत नहीं करता, अपितु सभी दर्शनों, व्याकरण, भूगोल, खगोल, ज्योतिष, गणित, शिल्प, इतिहास इत्यादि उस समय तक विकसित सभी विद्याओं से सम्बंधित शब्दों की सटीक व्याख्या प्रस्तुत करता है। इस कोष का लेखन कार्य का शुभारम्भ वि. सं. १९४६ अश्विन शुक्ला द्वितिया को राजस्थान के जालोर प्रांत में स्थित सियाणानगर में राजा कुमारपाल द्वारा निर्मित श्री सुविधिनाथ जिनालय के निकट संघवी शेरी में स्थित पोषधशाला / पोरवालों की धर्मशाला में किया था। आचार्य श्री प्रतिदिन नारियल की कटोरी में देशी पद्धति से निर्मित स्याही में भीगा कपडा रखते एवं बरु की कलम से दिन भर लिखा करते, सूर्यास्त से पूर्व स्याही वाला कपडा सुखा देते एवं पुनः दूसरे दिन उसी कपडे को पानी में भिगोकर अपना कार्य प्रारम्भ करते थे। और इसी तरह १३ वर्ष ६ महीना और ३ दिन (प्रायः १४ वर्ष) में यह कोप परिपूर्ण हुआ। विक्रम संवत् १९६० के वर्प के श्रेष्ट चैत्र मास में शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी बुधवार के दिन हस्त नक्षत्र में सूर्यपुर (सूरत) में सम्यक प्रकार से सम्पूर्ण संकलन कर आचार्य राजेन्द्रसूरिजी ने संसार को शुभ राजेन्द्र कोष दिया। १४ वर्ष की दीर्घ समयावधि में आचार्य श्री ने अपने साध्वाचारों का चुस्तरूप से पालन करते हुए विहार, दीक्षा, प्रतिष्ठा, अंजनशलाका, संघ-यात्राएँ और गच्छ के अन्य कार्य भी करते हुए विपक्षियों से शास्त्रार्थ के साथ-साथ अन्य साहित्य का भी निर्माण किया। आचार्य राजेन्द्रसूरीश्वरजी को प्राकत-संस्कृत आदि भापाओं का और व्याकरण, शब्द-शास्त्र व सिद्धांत आदि अनेक विषयों का गम्भीर ज्ञान था, तभी वे अभिधान राजेन्द्र' जैसे महान ग्रंथ का निर्माण कर पाये जो उन्हे अमर बनाने के लिये पर्याप्त है। नामकरण - आचार्य श्री ने विश्वकोप स्वरूप प्रस्तुत ज्ञानकोप का नाम प्रारम्भ में अभिधान राजेन्द्र' कोष के चौथे भाग में मंगलाचरण में 'अभिहरण राइंद' अर्थात अभिधान राजेन्द्र प्राकृत प्रशस्ति में 'राइंद कोप' एवं संस्कृत प्रशस्ति में अभिधान राजेन्द्र प्राकृत महाकोप दिया हैं। अभिधान राजेन्द्र कोषः इसमें तीन शब्द है अभिधान - संज्ञा, शब्द, नाम, तुल्यनाम में अर्थज्ञान, उच्चारण आदि राजेन्द्र - राजाओं के इन्द्र / चक्रवर्ती राजा - राजा गौतम स्वामी आदि गणधर, आचार्य भगवंत जिन शासन के राजा इन्द्र - शोभनीय, ऐश्वर्य कोप - भण्डार, खजाना अतः अभिधान राजेन्द्रकोप का शाब्दिक अर्थ है - १. नामों के चक्रवर्ती का खजाना २. शब्दों के राजा का ऐश्वर्य भण्डार M-KAnimukraandard
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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