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________________ खर्च हुए। यह यात्रा इतिहास में अविस्मरणीय थी। संवत् १९६३ का चातुर्मास आपने बडनगर में किया। चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् आपने मार्गशीर्ष मास में मंडपाचल की यात्रार्थ ससंघ प्रस्थान किया। उस समय आपकी अवस्था असी वर्ष की थी। मार्ग में ही आप ज्वराक्रांत हो गए। अतः राजगढ आना पडा। आपको अपने अंत समय का ज्ञान पहले से ही हो गया था। पोप शुक्ला ३ को आपने यतींद्रविजयजी एवं दीपविजयजी को श्री अभिधान राजेन्द्र कोप' के संपादन एवं मुद्रण का आदेश दिया। पौष शुक्ला ६ की संध्या को आप ‘अर्हम नमः' का जाप करते करते समाधियोग में हमेशा के लिये लीन हो गए। पोप शुक्ला ७ को आपके पार्थिव शरीर का मोहनखेडा तीर्थ पर अग्निसंस्कार किया गया। और आप यावत्चन्द्र दिवाकर अमर वन गए। धार्मिक जीवन के साथसाथ गुरुदेव का साहित्यिक जीवन भी एक अनुपम आदर्श था। अब हम उनकी साहित्यिक कृतियों पर प्रकाश डालने का प्रयत्न करते है। श्री अभिधान राजेन्द्र कोष २० वीं सदी के महान जैनाचार्य श्रीमदविजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी द्वारा रचित श्री अभिधान राजेन्द्र कोप' जैनागमों पर आधारित संदर्भ कोप है। इस कोष में प्राकृत के, विशेषतया जैनागमों से संबद्ध अर्ध-मागधी भाषा के सभी शब्दों के विभिन्न प्रयोग बतलाते हुए उनकी व्याख्याएँ और आवश्यक समस्त जानकारी विस्तार पूर्वक दी गई हैं। अभिधान राजेन्द्र कोप' की रचना द्वारा आचार्यश्री का पारमार्थिक अलौiिon प्रयोजन यह है कि 'मोक्षाभिलापी' सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति से इच्छुक लोगों को शब्दार्थ के माध्यम से शास्त्र का ससंदर्भ सही अर्थ उपलब्ध हो, भय का निवारण हों, सिद्धांतो का ज्ञान हों और भगवान महावीर की वाणी का विशिष्ट विवेचन उपलब्ध हो। इसीलिए आचार्य श्री ने आगमों में अन्तर्निहित शब्दो की कोप पद्धति से व्याख्या कर इस शब्दकाप का निर्माण किया है। इस ग्रन्थ का निर्माण साधु एवं श्रावकों के प्रतिवोध हेतु किया गया है तथापि सम्यग्ज्ञान प्राप्ति के इच्छुक प्राणीमात्र इस ग्रन्थ का उपयोग करने के अधिकारी हैं। अतः यह कोप ‘ज्ञानकोप' अथवा 'विश्वकोप' की श्रेणी में आता है। शब्दकोप एवं ज्ञानकोप में अन्तर है। जिस संग्रह में शब्दों के अर्थ, पर्याय, व्याख्याएँ आदि होती है, उन्हे 'शब्दकोप' कहते हैं और जिस संग्रह (कोप) में शब्द के सम्बंध की विशेप ज्ञातव्य वातें विस्तारपूर्वक दी जाती हैं, उन्हे 'ज्ञानकोप' अथवा 'विश्वकोप' कहते हैं। इस कोप में जैनागम साहित्य के समस्त प्राकृत शब्दों को अनेक प्रकार से विशिष्ट बनाया गया है। जैसे प्राकृत के समानान्तर उसका संस्कृत शब्द, प्राकृत शब्द की व्याकरणिक कोटियाँ, लिंग, पुरुष, वचन एवं व्युत्पत्ति आदि भिन्न-भिन्न वाच्यार्थ एवं उन अर्थो मे प्रयुक्त उस शब्द का प्रयोग किस ग्रन्थ में हुआ है, श्रीमद् राजेन्द्रसूरिः ओक महान विभूति की ज्ञान अवं तपः साधना + ४००
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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