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________________ 'सुदं में आउस्संतो' इस तरह श्री गौतमस्वामी के मधुर संबोधन वाक्य से प्रारंभ करके संक्षेप में श्रावक धर्म का वर्णन किया है। चौबीस दण्डक' नामक लघुप्रकरण 'त्रिलोकसार' एवं 'तिलोयपण्णति' के आधार पर ‘गतियों के आने-जाने के द्वार पर संक्षिप्त किन्तु रोचक ज्ञान दिया है। फिर 'तत्त्वार्थराजवार्तिक' के आधार पर 'जीवके स्वतत्त्व' और उनके अवांतर भेदों का अच्छा स्पष्टीकरण किया है। इसके पश्चात् 'द्वादशांग श्रुतज्ञान का विषय', 'श्रुत पंचमीका व्रत', 'पंचकल्याण', 'जैनधर्म', 'मुनिचर्या', 'आर्यिकाचर्या', 'त्रिलोकविज्ञान', 'मानवलो', 'जम्बूद्वीप' तथा 'अलौ गणित' जैसे विषयों पर मननीय लेख है। फिर दशलक्षण के दशधर्मो को कविताबद्ध करके लिखा है। फिर 'आध्यात्म पीयूष' में आत्म तत्त्व का ४५ पद्यखण्डो में अमृत-पान कराया है। अंतमें श्री पूज्यपाद स्वामी की संस्कृत में 'दशभक्ति' रचनाओं में से 'शांतिभक्ति का उद्धरण करते हुए स्वरचित हिंदी पद्यानुवाद दिया है जो एक अतिशयपूर्ण चमत्कारिक रचना है। अंत में ज्ञानामृत भाग १ की प्रशस्ति ५ पद्यों में लिखकर इस ग्रंथ को पूर्ण किया है। ज्ञानामृत भाग २ का प्रारंभ श्री गौतमस्वामी रचित ४८ मंत्रो से समन्वित 'गणधर वलय मंत्र' के अतीव सरल भापा में हिंदी पद्यानुवाद से किया है। तत्पश्चात् 'अनादि जैनधर्म' तीर्थंकर श्री शांति-कुंथु अरहनाथ परिचय, 'चौवीस तीर्थंकर जीवनदर्शन' तथा "भगवान बाहुबली' पर शास्त्रीय उद्धरणों अलंकृत लेख विशेष दृष्टव्य है। तदनंतर 'मध्यलोक' और 'जंबूद्वीप' की संरचना आदि का विशेष विवरण दिया है। इसके बाद 'दिगम्बर जैन मुनियों एवं आर्यिकाओं की दिनचर्या', 'श्रावकधर्म', 'देवपूजा विधि व सामायि' तथा 'सामायिक व्रतका लक्षण' पर संक्षिप्त विवरणात्मक लेख है। फिर आचार्य कुंदकुंददेव विरचित अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं प्रमाणिक ग्रंथ मूलाचार के आधार से 'मूलाचार सार' लिखा है। उसमें अत्यंत सौष्ठवपूर्ण, सरल, सारगर्भित भाषा-शैली में आचारांग' के वारह अधिकारों के माध्यम से साधुओं के आचार पर प्रकाश डाला है। श्री नेमिचन्द्राचार्य 'सिद्धान्त-चक्रवर्ती के 'वृहद् द्रव्यसंग्रह' की ५८ प्राकृत गाथाओं का पद्यमय सरल हिंदी अनुवाद दिया है। पुनः उसकी अनेक ग्रंथों के उद्धरण से एवं प्रश्रोत्तर के माध्यम से विस्तार से समझाते हुए विषयवस्तु को और अधिक हृदयग्राह्य बना दिया है। फिर ‘सोलहकारण भावनामें' एवं 'दशधर्म महत्त्व' पर संक्षिप्त वर्णन है। 'न्याय दीपिका सार' नामक लेख में श्री धर्मभूषण यति विरचित न्यायशास्त्र के सरल रचना मुल ग्रंथ 'न्यायदीपिका' को सार रूप में प्रस्तुत करके न्याय के पढने के इच्छुक लोगों के लिये हृदयग्राह्य व सरल बना दिया है। इसमें सामान्य प्रकाश एवं प्रत्यक्ष प्रकाश के माद्यम से नय, परीक्षा आदि को षड्दर्शन के परिप्रेक्ष्य में घटित करते हुए सर्वज्ञ देव द्वारा बताए गये विषय को सत्य सिद्ध किया है। साहित्य-साम्राज्ञी प. पू. ज्ञानमती माताजी + २७3
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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