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________________ ऋषभदेव चरितम् वर्तमान युग की आवश्यकता को देखते हुए प.पू. माताजीने भगवान ऋपभदेव एवं जैनधर्म के सिद्धान्तो को देश-विदेश में प्रसारित करने के महत् कार्य के अन्तर्गत विद्वत्-समाज की आवश्यकता की पूर्ति हेतु संस्कृत में 'ऋषभदेव चरितम्' का लेखन वी. नं.सं. २५२३ में प्रारंभ किया और षटखण्डागम की टीका के महत्त्वपूर्ण कार्य में व्यस्त होने के बावजूद अपनी आयुकी ६६वीं शरदपूर्णिमा के दिन पूर्ण कर दिया। इस कृति में भगवान ऋषभदेव के जीवन का उत्थान किस पर्याय से प्रारंभ हुआ और वे भगवान की श्रेणी में कैसे पहुँचे, इन समस्त विषयों का वर्णन महापुराण के आधार से दिया है। राजा महाबल से लेकर तीर्थंकर ऋपभदेव तक उनके १० भवों का वर्णन देकर भोगभूमि और देवगति के सुखों का भी विस्तृत वर्णन इस ग्रंथ में दिया है। आराधना (अपरनाम-श्रमणचर्या वी.नि.सं. २५०३ में प.पू. माताजीने मूलाचार, आचारसार, अनागार धर्मामृत, भगवती आराधना आदि ग्रंथो के आधार पर ४५१ श्लोक प्रमाण यह 'आराधना' नामक आचार ग्रंथ रचा है। प.पू. माताजीने अपने संस्कृत-व्याकरण छंद ज्ञान का पूर्णरूप से इसमें सदुपयोग किया है। प्रत्येक श्लोक का हिंदी मे अर्थ एवं आवश्यकतानुसार भावार्थ भी स्वयं लिखा है। श्लोको के उपर शीर्पक भी दिये हैं। इसमें दिगम्बर मुनि-आर्यिकाओं की दीक्षा से समाधिपर्यन्त प्रतिदिन प्रातः से सायंकाल तक की जाने वाली चर्या एवं क्रियाओं को दर्शाया गया है। यह ग्रंथ दर्शनाराधना, ज्ञानाराधना, चारित्राराधना, सामाचारीविधि, नित्यक्रिया, नैमित्तिक क्रिया, तप आराधना और आराधक नाम के आठ अधिकारों में निवद्ध है। इस प्रकार अनेक प्रकरणों से समन्वित यह ग्रंथ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वी. नि.सं. २५०५ में (पृष्ट सं. १५०) प्रकाशित यह ग्रन्थ संयम-मार्ग की चर्या समझने के लिये अत्यंत उपयोगी है। मूलाचार आ. श्री कुंदकुंद देव द्वारा रचित प्राकृत भाषा के १२४३ गाथाओं में निबद्ध, द्वादश अधिकारों में विभक्त 'मूलाचार' नामक ग्रंथराज दिगम्बर जैन आम्नाय में मुनिधर्म के प्रतिपादक शास्त्रों में प्रायः सर्वाधिक प्राचीन माना जाता है। _ 'मूलाचार पूर्वार्ध' एवं 'मूलाचार उत्तरार्ध' ऐसे दो भागों में विभाजित इस ग्रंथ के प्रतिपाद्य विषय हैं - मूल गुण, बृहत् प्रत्याख्यान, संक्षेप प्रत्याख्यान, समयाचार, पंचाचार, पिण्डशुद्धि, पडावश्यक, द्वादशानुप्रेक्षा, अनगारभावना, समयसार, शीलगुण प्रस्तार और पर्याप्ति। दिगम्बर जैन साधु-साध्वियों की आचार संहिता को दर्शान वाला यह ग्रंथ साहित्य-साम्राज्ञी प. पू. ज्ञानमती माताजी + २७१
SR No.023318
Book TitleJain Sahityana Akshar Aradhako
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalti Shah
PublisherVirtattva Prakashak Mandal
Publication Year2016
Total Pages642
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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