SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 323 સૂક્ષ્મસંપરાય ગુણસ્થાનક भी स्थिति निक्षेपनी प्र३५९॥ [ पछी पायाभृतयूहिरे यु छ - ‘एत्तो पाए सुहमसंपराइयस्स जाव मोहणीयस्स ट्ठिदिघादो ताव एस कमो / ' - (भाग-१५, पान नं. 328 2) વર્તમાન ગુણશ્રેણિના શીર્ષની ઉપરના નિષેકમાં અસંખ્યગુણહીન, ત્યાર પછી પુરાતન ગુણશ્રેણિના શીર્ષ સુધી વિશેષહીનના ક્રમે. ( 3) પુરાતન ગુણશ્રેણિશીર્ષ પછીના નિષેકમાં અસંખ્યગુણહીન, ત્યાર પછી અંતિમ અતિસ્થાપનાવલિકા પ્રાપ્ત ન થાય ત્યાં સુધી ઉત્તરોત્તર વિશેષહીનના ક્રમે. આ ક્રમ ચરમખંડના દ્વિચરમ સમય સુધી જાણવો. ચરમ સમયે કંઈક ન્યૂન વ્યર્ધગુણહાનિ ગુણિત સમયમબદ્ધ જેટલુ દલિક ઉકેરાય છે. તેને ઉદયસમયથી સૂક્ષ્મસંપરાય ગુણસ્થાનકના દ્વિચરમ સમય સુધીના નિષેકોમાં અસંખ્યગુણાકારે નાંખે છે. દ્વિચરમ સમય કરતા ચરમ સમયમાં અસંખ્ય પલ્યોપમના વર્ગમૂળ જેટલા પ્રદેશ આપે છે. આ રીતે ચરમખંડનો ઘાત કરે છે. કષાયપ્રાભૃતચૂર્ણિ તથા ધવલામાં ચરમખંડ ઉમેરતા દલનિક્ષેપનો ક્રમ બીજા વગેરે ખંડની જેમ કહ્યો છે, જુદો કહ્યો नथी. ક્ષપણાસારનો પાઠ આ પ્રમાણે છે - ___ 'एत्तो सुहुमंतोत्ति य दिज्जस्स य दिस्समाणगस्स कमो। सम्मत्तचरिमखंडे तक्कदकज्जेवि उत्तं व // 596 // हिंदी - इहांत लगाय (चरमखंडोत्किरणप्रथमसमय से) सक्षमसंपरायका अन्तपर्यन्त देयद्रव्य अर दृश्यमानद्रव्यका क्रम है / जैसे क्षायिकसम्यक्त्व विधानविर्षे सम्यक्त्व मोहनीयका अन्तस्थितिकांडकविर्षे वा ताका कृतकृत्यपना विर्षे कहा था तैसैही जानना / सो कहिए है। ___ इहां सर्वमोहकी स्थितिविर्षे सूक्ष्मसंपरायका जितना काल अवशेष रह्या तितनी स्थिति बिना अवशेष सर्वस्थितिका घात अन्तकांडककरि कीजिए है। तहां इस कांडककी स्थितिके निषेकनिका द्रव्यवि. जो द्रव्य अन्तकांडकोत्करणकालका प्रथमसमयविर्षे ग्रह्या ताकौं प्रथमफालि कहिए है। ताके देनेका विधान कहीए है- प्रथमफालिद्रव्यकौं अपकर्षणकरि ताकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभागमात्रद्रव्यकौं इहां सन्बन्धी सूक्ष्मसांपरायकालका अन्तसमयपर्यन्त तौ गुणश्रेणि आयामरूप प्रथमपर्व तिसविर्षे दीजिए हैं। तहां तिसके उदयरूप प्रथमनिषेकविषै स्तोक तातै द्वितीयादि निषेकनिविर्षे असंख्यातगुणा क्रम लीएं द्रव्य दीजिए है। तहां सर्व गुणकारशलाकाके जोडका भाग तिस द्रव्यकौं देइ अपनी अपनी गुणकार शलाकाकरि गुण निषेकनिविर्षे द्रव्य देनेका प्रमाण आवै है। इहां सूक्ष्मसांपरायका जो अन्तसमय ताका नाम गुणश्रेणिशीर्ष है / बहुरि अवशेष एक भागमात्र जो द्रव्य ताकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभागमात्र द्रव्यकौं तिस गुणश्रेणिशीर्षौं ऊपरि पहले जो गुणश्रेणिआयाम था ताका शीर्षपर्यंत जो द्वितीयपर्व तिसविर्षे दीजिए है। तहां तिस द्रव्यकौं द्वितीयपर्वमात्रगच्छका भाग देइ तहां एक भागविर्षे एक घाटि गच्छका आधाप्रमाणमात्र विशेष जोडे गुणश्रेणिशीर्षके अनंतरि जो निषेक तीहिं विर्षे दीया द्रव्यका प्रमाण आवै है।सो यहुगुणश्रेणिशीर्षविर्षे दीया द्रव्यतै असंख्यातगुणा घाटि है, ताके ऊपरि ताके द्वितीयादिनिषेकनिविर्षे चय घटता क्रम लीएं द्रव्य दीजिए हैं। बहुरि अवशेष एकभागमात्र द्रव्य रह्या ताकौं द्वितीयपर्वके ऊपरि जो सर्वस्थिति ताका अन्तविर्षे अतिस्थापनावली छोडि सर्वनिषेकरूप जो तृतीयपर्व तिसविर्षे दीजिए है। तहां तिस द्रव्यकौं
SR No.023309
Book TitleKshapak Shreni Arthadhikar Ane Paschim Skandh Arthadhikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages388
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy