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________________ विषय अवशिष्ट संख्या ३ उपकेशगच्छाचार्यों के निर्माण किये हुए ग्रन्थ अवशिष्ट संख्या ४ उपकेशगच्छ्छाचार्यों द्वारा कराई हुई - जिनालयों और जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्टा प्रतिष्टा के प्रमाण शिलालेख चतुर्थ अध्याय. शत्रुंजय तीर्थ के उद्धार का फरमान पाटण गुजरात में यवन साम्राज्य अलपखान और समर सिंह पृष्ट १३३ १३६ १३८ १४५ १४५ १४६ १४७ वि. सं. १३६९ का शत्रुंजय भंग १४८ आचार्य सिद्धसूरि के समक्ष समरसिंह की भीष्म प्रतिज्ञा १५१ अलफ्खान का फरमान १५.२ संघ सभा और मूर्त्ति के लिये विचार १५६ संघ प्रज्ञा सिरोधार्य १६१ पंचम अध्याय. फलही और मूर्ती १६३ राणा महीपालदेव की उदारता १६३ मंत्री पातशाह और फलही १६५ १० विषय अष्टमतप और शासनदेवी फलही की पूजा शत्रुजयपर मूर्ति का निर्माण छट्ठा अध्याय. प्रतिष्टा: आचार्य र संघपति शुभ मुहूर्त का निर्णय शत्रुंजय का संघ जैनाचार्यों का संघ के साथ संघपतियों के साथ यात्रा खंभात और देवगिरि का संघ तीर्थपति की यात्रा प्रतिष्टा की विधि दस दिनों का महोत्सव याचकों को दान प्रार्थना सातवाँ अध्याय. प्रतिष्ठा के पश्चात् और इनाम श्री गिरनार तीर्थ की यात्रा देशलशाह को पौत्र की वधाई मुग्धराज और समरसिंह देवपत्तन में प्रवेश अम्बादेवी का चमत्कार पृष्ट १६६ १६६. १७२ १७५ १७५. १७६ १७७ १७८. १८० १८४ १८५. १८७ १९५ १९५ १९७ १६८ १९८. २००. २०१३ २०१ २०३ २०५..
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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