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________________ फलही ओर मूर्ति. १६५ पुण्योपार्जन करते हैं तो मैं सिर्फ धन के कारण ही किस प्रकार इस सुकृत कार्य से हाथ धो बैह् ? मेरी अब यह हार्दिक इच्छा हुई है कि देव बिम्ब बनवाने के लिये यदि कोई भी आरासण खान से पत्थर ले जावे तो उस से भविष्य में किसी भी प्रकार का राजकीय कर नहीं लिया जाय । इस प्रकार मुझे भी सुकृत कार्य का लाभ कुछ अंश में अवश्य मिला करेगा।" ___इस प्रकार राणा महीपालदेव प्रसन्नचित्त हो कर समरसिंह के सेवकों को ले कर अपने मुख्य मुख्य राज्य कर्मचारियों की मंडली सहित स्वयं आरासण पाषाण की खान पर गया । राणाने खान में काम करते हुए सब सूत्रधारों को बुलाया और उन के परामर्श से जिन-बिंब की कृति के लिये फलही का हिसाब लगाया । सूत्रधारों के कथनानुसार से भी अधिक आकार की फलही निकालने की राणाजीने आज्ञा प्रदान की। फलही.... निकालने का कार्य महोत्सवपूवर्क शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया गया। समरसिंह के सेवकोंने भी सूत्रधारों का सोनेके आभूषण, वस्त्र, भोजन और ताम्बूल से विधिपूर्वक सम्मान किया। इस अवसर पर कुछ दान भी दिया गया था । सत्रागार भोजनशाला खोल दी गई थी। राणा महीपालदेवने अपने सुयोग्य मंत्री पाताशाह को खान पर फलही के निरीक्षण के लिये नियुक्त कर दिया और आप त्रिसंगमपुर लौट आए । अहा ! भारत की भूमिपर भी कैसे
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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