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________________ समर सिंह बहरिमने यह कार्य तनिकसी बेर में कर डाला। बाद में खान ने अपने हाथ से पान, तसरीफ और फरमान बड़े ही सम्मानपूर्वक हमारे चरितनायक को अर्पित किया और कहा कि आप अपने मनोच्छित कार्यों को पूर्ण करिये । इस के अतिरिक्त और भी कोई कार्य हो तो मुझे निःसंकोचपूर्वक कहियेगा मैं अवश्य सहायता दूंगा । फिर खान की आज्ञा से बहिरमने आप को एक अश्व दिया और पहुँचाने के लिये आप के घर तक साथ आया । क्याँ न हो-खान को यह बात निश्चयपूर्वक मालूम थी कि समरसिंह परोपकारपरायण, गुणी, राज्यभक्त और सम्मान करने योग्य उत्तम पुरुष हैं । खान की ऐसी श्रद्धा के कारण ही एक दुःसाध्य कार्य सुलभसाध्य हो गया । ___ साधु समरसिंह खान के दिये हुए पान, मान फरमान और तसरीफ ले अश्वारूढ़ हुए। बहिरम सहित जिस समय पाटण के बाजार के मध्य में पहुंचे तो उन के स्वागत के लिये बात ही बात में सहस्रों जनों की भीड़ एकत्रित हो गई। भाप तुरन्त अश्व से उतर पैदल चल कर भीड़ में होते हुए बहुत कठिनाई से घरपर पहुँचे । संघ के अग्रेसर और नागरिक भी रास्ते से साथ हो कर समरसिंह क घर पर पधारे । बहिरम को बहुमूल्य सुन्दर वस्तुओं से तोषित कर विदा किया । आपने अपने पिताश्री के. चरणकमलों में बीस सहित फरमान को रख दिया । देशलशाहने इस कार्य की सफलता को देखकर विचार
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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