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________________ १३७ उपकेशगच्छ परिचय। को ढूंढने को जावें तो सब के सब शिलालेख मिलना तो बहुत ही कठिन है क्योंकि इस के कई कारण हैं। कई मन्दिर-मूर्तियों तो विधर्मियों के अत्याचारों से नष्टभ्रष्ट हो गई जिन के खंडहर भी मिलना दुर्लभ सा हो गया है और पूर्व जमाने में कई पुराने मन्दिरों के स्मारक कार्य करते समय शिलालेखों या प्राचीनता की दरकार भी नहीं रखी जाती थी । जैसे पुनीत तीर्थ शत्रुजय पर प्राचीन समय से ही मन्दिरों की बड़ी भारी हरमाल थी पर उन के शिलालेख इतने प्राचीन नहीं मिलते हैं। इसी तरह अन्य मन्दिरों का भी हाल है । पर हम इस विषय में सर्वथा हताश भी नहीं हैं। आज पूर्वीय और पाश्चात्य पूरातत्त्वज्ञों की शोध और खोज से अनेक स्थानोंपर प्राचीन खंडहर और शिलालेख उपलब्ध हुए हैं । उडीसा प्रान्त की खण्डगिरि और उदयगिरि, प्राचीन पहाड़ियों की गुफाओं में प्राचीन मूर्तियों और शिलालेख तथा मथुरा का कंकालीटीला के खोदकाम में अनेक प्राचीन मूर्तियों और शिलालेख उपलब्ध हुए हैं। देवगिरि ( दौलताबाद ) के किलों में सैकड़ों मूर्तियों निकल चूकी हैं। वे शिलालेख वगैरह दो हजार वर्षों से भी अधिक प्राचीन हैं फिर भी हम आशा रखते हैं कि जैसे २ अधिकाधिक शोध और खोज होती रहेगी वैसे २ इस विषयपर भी खूब प्रकाश पड़ता जायगा । यह निसंदेह है कि जैनाचार्यों के उपदेश से जैन राजा महाराजा और सेठ साहूकारोंने असंख्य द्रव्य व्यय कर जैन मन्दिरों से मेदिनि-भूषित कर दी थी।। वर्तमान के उपलब्ध शिलालेख जिनमें से कई मुद्रित भी ।
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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