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________________ समरसिंह [अवशिष्ट संख्या ४] 40 1 श्री उपकेशगच्छाचार्यों द्वारा जिनमन्दिर-मूर्तियों की कराई हुई प्रतिष्टा । यों तों उपकेशगच्छाचार्योने हजारों मन्दिरों व लाखों मूर्तियों की प्रतिष्टा करवाई थी जिसके यत्र तत्र अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। उन प्रमाणों से यह भी पता मिल शक्ता है कि मरूभूमि, सिन्ध, कच्छ और पंजाब वगैरह प्रान्तोंमें परिभ्रमण कर वे जैसे २ अजैनों को जैन बनाते गये वैसे २ उन्होंके भात्म कल्याण निमित्त जैन मन्दिरों की प्रतिष्टा भी करवाई। बात भी ठीक है। उस समय की विशाल जनसंख्या के लिये अधिक संख्यामें मन्दिर बनाने की आवश्यक्ता भी थी। अगर कथानक साहित्य का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया जाय तो ऐसे प्रचुर प्रमाण भी मिल सकेंगे । श्रीमालनगर, पद्मावती, चन्द्रावती, शिवपुरी, उपकेशपुर, कोरंदपुर, शिवनगर, मथुरा, वल्लभीनगरी, कन्याकुब्ज, माधपुर, सोपारपुर, जाबलीपुर, मारोटकोट, राणकगढ़, त्रिभुवनपुर, किराटकूप, वणथली, देवपाटण, मरूकोट, उच्चकोट, लोद्रवा, पट्टण, जंगालू , पंचासरा, स्थंभनपुर, भरूच, अणहिलपुरपट्टण और मंजारी इत्यादि अनेक नगरों के नृपतियों को प्रतिबोध दे कर उपकेशगच्छाचार्योने जिनालयों से भूमि विभूषित कर दी थी। इस ऐतिहासिक युगमें हम उन सब मन्दिरों के शिलालेखों
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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