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________________ श्रेष्ठिगोत्र और समरसिंह | ७१ पत्र लिख भेजा । सहजने उसे सादर स्वीकार किया | उसने देवगिरि नरेश से तुरन्त ही मन्दिर के लिये आवश्यक जमीन प्राप्त करली । इधर सहजपालने बहुत द्रव्य लगा कर देवभवन तुल्य भीमकाय मन्दिर चतुर शिल्पकारों द्वारा तैयार करवा लिया। उधरे देशलशाहने धारासन का उत्तम पाषाण मंगवा कर मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान् की दो दिव्य बड़ी मूर्त्तियों तथा २४ अन्य मूर्त्तियों देवकुलिकाओं के लिये और सच्चाईका देवी, अम्बिका देवी, सरस्वतीदेवी और गुरुमहाराज की मूर्त्तियों भी सुघड़ कारीगरों के हाथों से तैयार करवाई। इतनी तैयारी कर देशलशाहने आचार्य को विनंती कर देवगिरि चलने के लिये साथ लिया । देशलशाहने साथ में इतने स्त्री पुरुषों को लिया कि इस एकत्र समायद को देखकर ऐसा मालूम होता था मानो कोई सेना जा रही है । इस बात की सूचना जब सहजपाल को मिली तो वह मूर्त्तियों की अगवानी करने के लिये कई मील सत्वर सामने आया | नगर प्रवेश का महोत्सव इतनी धूमधाम से हुआ कि रामदेव नृपति इस अपूर्व जमघट को देख चकित से हो दाँनो तले ऊंगली दबाने लगे । शुभ मुहूर्त में आचार्य श्री के करकमलों से प्रस्तुत बिम्बों की अञ्जनशलाकापूर्वक १ दुष्टारिष्टहरः पार्श्वजिनः श्रीमूलनायकः । विधाप्यतामयं साधो ! सर्वकामितदायकः ॥९३३॥ २ चतुर्विंशतिबिम्बानि द्वे बिम्बे च बृहत्तरे | सत्याऽम्बा-शारदा युग्म गुरुमूर्तीर कारयत् ॥ ९३९ ॥
SR No.023288
Book TitleSamar Sinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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