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________________ તપશ્ચર્યા ५४२९ -६ मनुष्य को घी दूध आदि रसों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि रस प्राप्त उद्दीपक होते है । अद्दीप्त पुरुष के निकट काम भावनाएं वेसे ही तली आती है, जैसे स्वादिष्ट फल वाले वृक्ष के पास पक्षी चले आते है । ३९. न रगट्ठाए- जिज्जा, जवणट्ठाए महामुणी। - उत्तराध्ययन सूत्र ३२/१० साधु ..... के लिए भोजन न भरे, किन्तु जीवयात्रा के निर्वाह के लिए करे । ४०. अट् निद्धेण धिरापा उइज्जति । - आवश्यकनियुक्ति १२६३ अति स्निग्ध आहार करने से विपय कामना उद्दीप्त हो उठती है। प्रायश्चित : ४१. पावं छिंदइ जम्हा पायच्छित्तंति भण्णइ तेणं । - पंचाशक सटीक विवरण १६/३ जिसके द्वारा पाप का छेदन होता है, उसे प्रायश्चित कहते हैं। ४२. प्रायः पापं विनिर्दिष्टं, चित्तं तस्य विशोधनम् । -धर्मसंग्रह ३ अधिकार प्रायः शब्द का अर्थ पाप है, और चित्त का अर्थ है, उस पाप का शोधन करना । अर्थात् पाप की शुद्ध कने वाली क्रिया को प्रायश्चित कहते हैं। ४३. अपराधो वा प्रायः, चित्तं शुद्धिः प्रायस चित्तं । प्रायश्चित्तं-अपराध-विशुद्धिः । - राजवातिक ९/२२/१ अपराध का नाम प्रायः है और चित्त का अर्थ शोधन है । प्रायश्चित अर्थात् अपराध की शुद्धि । प्रायइत्युच्यते लोकस्तस्य चित्तं मनो भवेत् । तच्चित्त-ग्राहकं कर्म, प्रायश्चित्तमिति स्मृतम् ।। - प्रायश्चित समुच्चय -ace
SR No.023263
Book TitleTapascharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanmuni
PublisherAjaramar Active Assort
Publication Year2014
Total Pages626
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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