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________________ તપશ્ચર્યા ३४. चतुर्विधाशन- त्याग उपवासो मतो जिनैः । ३५. अशन आदि चारो प्रकार के आहार का त्याग करना भगवान के द्वारा उपवास माना गया है । उणोदरी : ६. ३७. ३८. हियाहारा, मियाहारा, अप्पाहारा प जे नरा । न से पिज्जा सिनिच्छंति अप्पाणं ते गगिच्छया ॥ - - सुभाषितरत्नदोह रस-परित्याग जो मनुष्य हिताहारी (शरीर को हितकारी) मिताहारी (नियमित आहारी) और अल्पाहारी (नित्यप्रति के आहार से कम भोजन करने वाले) हैं, उन्हें किसी वैद्य से चिकित्सा करवाने की आवश्यकता नहीं, वे स्वयं ही अपने वैद्य है, चिकित्सक है । उणोरिया सुहमाणइ । मरणसमाधि १३६ उणोदरी तप करने वाले सुख पाते हैं । वे कभी अस्वस्थ नहीं होते । अतिरेगं अहिगरणं । - ओपनिर्युक्ति ५७८ रसापगामं न निसेवियव्वा । पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवंति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी ॥ ओघनियुक्ति ७४१ आवश्यकता से अधिक एवं अनुपयोगी उपकरण रखना वास्तव में अधिकरण (दोषरूप एवं क्लेशप्रद हैं । પ્રકરણ ६ उत्तराध्ययन सूत्र ३२/१० ४८८
SR No.023263
Book TitleTapascharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanmuni
PublisherAjaramar Active Assort
Publication Year2014
Total Pages626
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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