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________________ (सिरि भूवलय ) काव्य कुमुदेन्दु अपने काव्य के विषय में कहते हैं सर्वार्थ सिध्दि सम्पदद निर्मल काव्य। धर्मव लौकिक गणित।। १-८३ लेसिनि भजिसुत बरुव निर्मल काव्य । श्रीशन गुणितद काव्य ॥३-१३३ दृष्टांतदोळगेल्ला वस्तुव साधिप। अ मंगल विह काव्य ॥ ३-१३४ गुणाकार वेनुव गणकरि बंदिह । अनुभव वैभव काव्य ॥ ३-१३५ बळे सुत चारित्रव शुध्दगोळिसुता। बळिय साधिप सिध्दि काव्य।। ३-१३६ गिळिय किगिले दनि काव्य। एळे वेण्ण दनियंककाव्य ॥ इळेगादिमनसिज काव्य। सुलिपल्ल सुलियद काव्य। ३-१६२,१६३ कर्माटक मातिनिन्दलि बळेसिह । धर्म मूरनूरअरवत्तु मूरं ॥ निर्मलवेनुत बळिय सेरिप काव्य । निर्मल स्याद्वाद काव्य। ३-१७१ तनगे बारद मातुगळनेल्ला कलिसुतं । विनयदध्यात्म अचल ॥ ३-१७२ तनुवनाकाशके हारिसि निलिसुव । घन वैमानिक दिव्य काव्य ॥४-१५५ रणक हळेय कूगनिल्लवागिप काव्य । दनुभव खेचरकाव्य ॥ ४-१५६ धार्मिक दृष्टि - मनुजराडुव ऋक्कु दिविजराडुव ऋक्कु । दनुजराडुव ऋक्कुदनद ॥ विनयवु गोब्राह्मणेभ्यः शुभमस्तु । जिनधर्मसमसिध्दरस्तु ॥ ६-८३॥ रतुनत्रयदे आदि अद्वैत । द्वितियवु द्वैतवेम्बंक ॥ तृतीय दोळनेकांतवेने द्वैताद्वैतव । हितद साधिसिद जैनांक ॥ = 86
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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