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________________ सिरि भूवलय की स्तुति करते हैं। इनमें से कोई भी कुमदेन्दु कवि का संबंधी नहीं है यह स्पष्ट होता है । ( क. च. पु. १ - ३२५) कुमुदेन्दु (ई. सू. १२७५ ) :- आप अपने प्रशंसनीय गुरु परंपरा में “वीर सेन, जिनसेन, (७ व्यक्तियों के बाद) वासू पूज्य शिष्य अभेन्दु पुत्र “कुमुद्रेन्दु” माधव चंद्र, अभयेन्दु, कुमदेन्दु वति प्रति सुत, माघ नंदी मुनि, बालेन्दु जिन चंद्रा आदि । यह कुमुदेन्दु भूवलय के कुमुदेन्दु नहीं है। महाबल कवि (ई.सू. १२५४ ) :- आप के गुरु परंपरा में जिनसेन, वीर सेन, समंत भद्र, कवि परमेष्ठि, पूज्य पाद, गृद्रपिंच, जटा सिंह, नंदी, अकलंक, शुभ चंद्र हैं। “कुमुदेन्दु मुनि” विनय चंद्र, माधव चंद्र, राज गुरु, मुनिचंद्र, बाल चंद्र, भाव सेन, अभयेन्दु, माघ नंदी यति, पुष्प सेन आदि हैं । यह सभी भूवलय से संबंध नहीं रखते है। समुदाय माघनंदी ( ई.सू. १२६०) : - आप के गुरु परंपरा में मूल संघ बलात्कार गण के वर्धमान ( अनेक पीढी शिष्यों के बाद) श्रीधर, शिष्य वासू पूज्य, शिष्य उदय चंद्र, शिष्य कुमुद चंद्र, शिष्य माघ नंदी कवि हैं। यह कुमुद चंद्र भी भूवलय के कुमुदेन्दु नहीं हैं। (क.च. पु. १ - ३८८ ) कमलभव (ई.सू.१२७५ ) : - आप के गुरु परंपरा में कोन्डकुन्ड, भूत बलि, पुष्प दंत, जिनसेन - वीरसेन, ( आगे २३ व्यक्तियों के बाद ) पद्म सेन व्रति, जय कीर्ति व्रति, कुमुदेन्दु योगी, शिष्य माघ नंदी मुनि ( आगे ६ व्यक्तियों के बाद) स्वगुरु माघ नंदी पंडित यति । इस तरह आप के गुरु परंपरा में तीन माघ नंदी का उल्लेख मिलता है। यह कुमुदेन्दु भी भूवलय के कुमुदेन्दु नहीं है। पार्श्व पंडित (ई. सू. १२०५ ):- आप अपने गुरु की स्तुति करते समय वीर सेन को “गणितान्वीत बुध्दि” माने जाने वाले वीराचार्य वीर सेन कहकर स्तुति करते हैं। (क. च. १-३२५) भाषा और लिपि कुमुदेन्दु, आदि तीर्थंकर के वृषभ देव के गणधर वृषभ सेन से लेकर सभी गणधर कन्नडीगा ही होने के कारण सभी तीर्थंकर के उपदेशों के समय प्राप्त 67
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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