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________________ सिरि भूवलय ऊन विल्लद श्री कुरु वंश हरी वंश। आन्नद मय वंश गळलि।। ताने तानागि भारत वाळ्द राज्यद। श्री श्रीनिवास दिव्य काव्य।।४७॥ श्री कुरु वंश हरि वंश आनंद मय वंश में स्वयं ही भारत के द्वारा शासित श्रीनिवास दिव्य काव्य है। सिरी भूवलयं नाम सिध्दांतवु। दोरे अमोघवर्षांक नृपं॥ १७-९४ ११२। सिरि भूवलय नाम सिद्धांत, राजा अमोघवर्ष । ईयुते कर्माट जनपद रेल्ल । श्रेयो मंगल धर्म ॥१६-२१४-५।। कर्नाटक की जनता को श्रीयोमंगल धर्म को देता हूँ। इस प्रकार कुमुदेन्दु अमोघ वर्ष के नाम का उल्लेख करने के कारण , इस राजा ने सन् ८१४-८७७ तक शासन कार्य किया था इस विषय में संदेह नहीं है। इनके गुरु का समय सन् ७८३ का होगा और शिष्य का समय सन् ८१४ का रहा होगा और इस भूवलय ग्रंथ को लगभग सन् ८०० में रचा गया होगा और कवि का समय भी इसी समय के लगभग होगा ऐसा कह सकते हैं । कुमुदेन्दु हमेशा गंगरस और उनके वंशजों को स्मरण करने के साथ साथ गोट्टिगा(ग्वाला) सैगोट्ट शिव मार के नाम का भी उल्लेख करते हैं महादादी गांगेय पूज्य ॥ ५६॥महिय गंगरसर गणित ॥ ६६॥ महिय कळ्ळप्पु कोवलला।। ७१।। महवीर तलेकाच गंग ॥७२॥ आदि गंगेय के द्वारा पूजित महिमामय गंगरस गणित। महिमा मय कळ्वप्पु कोवळाळ तलेकाड। अरसराळिद गंग वंश ॥ १२॥ त्रसोत्तिगेयवर मंत्र ॥१३॥ येरडूवेरेय द्वीपदंद ॥१४॥ गर्व गोट्टिग रेल्लरंद ॥१५।। राजाओं द्वारा शासित गंगवंश। ढाई द्वीप से गुरु गोट्टिग। अरसुगळालद कळ्ळप्पु॥२०॥ दंगदनिभव काव्य।।२३।।अ.१२-१२-२३
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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