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________________ सिरि भूवलय आज से अर्धशतमान पूर्व इस अपूर्व ग्रंथ का संग्रहण, संशोधन व संपादन के लिए अपार रूप से श्रम साध्य तीन महानुभावों के विषय में कुछ परिचयात्मक और कृतज्ञता के विचार विचारों को प्रकट करना मेरे लिए संतोष का विषय बनता है। पंडित यल्लप्पा शास्त्री स्याद्वाद भीषग्मणी वैद्य राज और “वैद्य विशारद" आदि उपाधियों से विभूषित पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी सिरि भूवलय ग्रंथ के संशोधक थे। यल्लप्पा शास्त्री जी के बाल्य काल में ही उनकी माता का निधन हो गया था। सौतेली माँ से तंग आकर श्रवणबेळगोळ के मठ में अपना बचपन बिताया। अपनी गुरु भक्ति से श्री गुरु को संतृप्त कर जैन दर्शन के विषय और संस्कृत प्राकृत आदि को सीखा। अनेक जैनायुर्वेद ग्रंथ का अभ्यास कर आयुर्वेद के पंडित कहलाए। जनगड ( मैसूर के पास एक छोटा शहर) के श्री बी. वी. पंडित के स्ववैद्य शाला के उत्पादों के प्रचारक बन कर्नाटक मुबंई और चेन्नई तक का भ्रमण किया । बंगलोर जिले के दोड्डबेले ग्राम वासी व शतावधानी श्री धरणेन्द्र पंडित जी के पास अपूर्व व असामान्य केवल अंकों द्वारा रचित एक ग्रंथ जिसमें अनेकानेक विषय जैसे वैद्यकीय, ज्योतिष्य, गणित अणुशास्त्र, भाषा शास्त्र, लौह शास्त्रादि विषय हैं, ऐसा यल्लप्पा शास्त्री जी जानते थे। इसी कारण श्री धरणेन्द्र पंडित जी से संपर्क बढाने की चाह में यल्लप्पा शास्त्री जी ने उनके छोटे भाई की सुपुत्री ज्वालम्मा से विवाह किया। श्री धरणेन्द्र पंडित जी के निधन के बाद अपनी पत्नी के एक जोडी कंगन उनके पुत्रों को देकर अंकों में रचित उस ग्रंथ को प्राप्त किया। १९२७ के लगभग श्री यल्लप्पा शास्त्रीजी को अनेक आयुर्वेद सम्मेलनों में जैनायुर्वेद, जैन वैद्य, अहिंसायुर्वेद, तथा पुष्पायुर्वेद आदि अनेक प्रशंसा पत्र और उपाधियाँ प्राप्त हुई। १९३५ में आप ने १५० जैन अनुयायियों को, एक विषेश रेल गाडी को चालित कर भारत के सभी जैन क्षत्रों का दर्शन कराया। इसी साल आपने अपने ही घर में स्याद्वाद मुद्रणालय में “ सर्वार्थ सिध्दि” नाम से जैन मासिक 49
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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