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________________ सिरि भूवलय अनंत सुब्बाराय जी ने भी हाथ मिलाया। ०५-०३-१९५३ में सर्वार्थ सिध्दि संघ के पुरस्कार रूप में प्रप्रथम कन्नड के सिरी भूवलय ग्रंथ को कन्नड के सारस्वत जग को अर्पित किया गया। इनकी यह साधना प्रशंसनीय है। पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी के द्वारा छोडे गए कार्य को पुनः आरंभ करने की दिशा में पहले कदम के रूप में १९९६ में सिरि भूवलय के संदर्भ में एक संक्षिप्त परिचय पुस्तक प्रकाशित की गई। आगे १९९८ में सिरि भूवलय में सिरि भूवलय फ़ॉउन्डेशन (रि) की स्थापना कर पंजीकृत किया गया। सिरि भूवलय के कार्य कलाप अबाधित रूप से निरंतर होने लगे और फिर २००० में श्री मोरोपंत पिंगले जी ने सिरि भूवलय की हिन्दी आवृति की और १४ अध्याय को मुद्रित करने का उद्देश्य व्यक्त किया तब पूना के बाबा साहेब आप्टे स्मारक संघ के साथ सिरि भूवलय फ़ॉउन्डेशन के द्वारा किए गए समझौतानुसार १००० चक्र बंधनों को उन्हें भेजा गया। ___ २००१ में पुस्तक शक्ति की ओर से परिष्कृत कर सिरि भूवलय को एक लघु उपन्यास के रूप में पुनः प्रकाशित किया गया। दिवंगत यल्लप्पा शास्त्री जी ने सिरि भूवलय के विषय में अनेक गणमान्यों के विचारों का ध्वनि मुद्रण और दृश्य मुद्रण तैयार किया था। उन्हें आज तक सुरक्षित रखा गया है। अब सिरि भूवलय फ़ॉउन्डेशन (रि) संस्था, पुस्तक शक्ति के सहयोग के साथ प्रथम मुद्रित ३३ अध्यायों और मुद्रित न किए हुए २३ अध्यायों, के साथ सभी ५६ अध्यायों का समग्र परिचय जनता के सामने रखने का उद्देश्य रखता है। इस बृहद साहस के लिए पुस्तक शक्ति का सतत प्रोत्साह और समयोचित सलाह श्लाघनीय है। इस पृष्ठभूमि में पुस्तक शक्ति की प्रेरक शक्ति श्री वाय. के . मोहन जी को और उनके सहयोगी श्री प्रभाकर चेंडूर, श्रीमती वंदना राम मोहन, श्री उमेश, और सुन्दर मुद्रण के लिए ओंकार हाई प्रिन्टस के श्री अच्युत जी का सिरि भूवलय फ़ॉउन्डेशन आभारी है। साथ ही डॉ. बी.एस. वासुदेव मूर्ति और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती जी. आर. गायत्री तथा सिरि भूवलय के प्राकृत स्तम्भ काव्य के अर्थ को डॉ. एम. डी.वसंत राजैय्या का सिरि भूवलय अनंतानंत आभार प्रकट करता है। इस ग्रंथ के उपयोग को जन सामान्य किंचित भी उपयोग करे तो पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी का महा उद्देश्य पूर्ण होगा साथ ही उनकी आत्मा को शांति मिलेगी ऐसा सिरि भूवलय फ़ॉउन्डेशन का विचार है। 148
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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