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________________ ( सिरि भूवलय) सन् ७८० के उक्त तिथि में शुक्र सिंह में नहीं होगा और कुंभ में कोण(शनि) नहीं होगा । सन् ८१६ कार्तिक शुद्ध १३ को ग्रह सामान्य तौर से वीरसेन के कहेनुसार रहें तो भी विक्रम राय के शक से नहीं मिलते। जगत्तुंग देवराज्य के मोद्दणरायण के आधार पर, वीरसेन के शिष्यों के ग्रंथों के आधार पर भी, वीरसेन के काल का निर्धारण कर सकते हैं। तुंग राष्ट्र कूट चक्रवर्तियों का चिन्ह है। राष्ट्र कूट में इम्मडि गोविन्द (सन् ७७२-७७९) को यह जगत्तुंग नाम की उपाधि दी गई होगी तो भी आज के वर्तमान शासन में दिखाई नहीं देता। तत्त्पश्चात ध्रुवनिरुपम के शासनावधि में (७७९-७९३) हरिवंश कर्तृ जिनसेन ने वीरसेन के नाम का उल्लेख किया है। ध्रुवनिरुपम को जगत्तुंग उपाधि रही होगी ऐसा निश्चित नहीं है। बादि पोद्दि के पट्टदकल शासन इम्मडि गोविन्द का है फ्लीट के इस कथन को कील्होर्न अंगाकार नहीं करते । वामन के लिंगानुशासन में जगत्तुंग सभा उल्लेखित है। हरिवंश के द्वारा रचित बृहत्पान्नाटसंघ के (प्रथम) जिनसेन वीरसेन, कीर्तिषेण, गुरुओं को अपने समकालीन (शक ७०५=सन् ७८३) राजाओं के रूप में उल्लेखित किया है (कर्नाटका इतिहास के द्वारा संकलित संस्करण १ पृ सं ६७) इसमें उल्लेखित वीरसेन धवळ ग्रंथ कर्ता होने के कारण सन् ७८३ से पहले ही प्रसिद्ध हुए होंगें ऐसी कल्पना की जा सकती है। प्रथम जिनसेन ने, कीर्तिषेण के अग्रशिष्य वर्धमानपुर में नन्न राजा के द्वारा निर्मित पाश्वनाथ के देवालय में ग्रंथ को रचा ऐसा कहा है। द्वितीय जिनसेन ने वीरसेन मुनि के शिष्य विनय सेन के प्रचोदन(प्रेरणा) से पाश्र्वाभ्युदय नाम का वेष्टत काव्य की रचना की ।(संकलन संस्करण १, पृ.सं ६८) इससे अमोघ वर्ष के परम गुरु जिनेसेन, वीरसेन के शिष्य रहें विनयसेन के समकालीन हैं । महापुराण में वीरसेन अपने गुरु और धवळ ग्रंथकर्ता के रूप में जिनसेन का नाम लिया है। (संकलन संस्करण १, पृ.सं ७४) यही जिनसेन वीरसेन के धवळ के समाप्ति के रूप में, जयधवळ को शक ७५९, फाल्गुण शुद्ध दशमी नंदीश्वर महोत्सव के दिन पूर्ण किया । श्री पाल ने इस ग्रंथ का संपादन किया, अमोघ वर्ष के शासन काल में गूर्जरार्य से मिले वाट ग्राम में लिखा गया है, ऐसा जिनसेन ने जयधवळ की प्रशस्ति में कहा है। (संकलन संस्करण १, पृ.सं ७७) 448
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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