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________________ (सिरि भूवलय) कहते हैं। तच्छेद अर्थात भाजक संख्या (a:/0=/)। बारहवीं सदी के भास्कराचार्य ने परिमित संख्या को शून्य से विभागित किया जाए तो खहर प्राप्त होगा परन्तु यह खहर अनंत राशी होगी, ऐसा कहा है । ओह्म के कहेनुसार अ शून्य नहीं है ब शून्य है ऐसा सोचने पर अ/ब का कोई अर्थ नहीं निकलता । फिर भास्कर ने अनंत के लिए किसी भी परिमित संख्या को जोडे या घटाए तो परिवर्तन नहीं होगा ऐसा निश्चित किया । अ/० + ब=अ/०(यहाँ अ और ब परिमित) कृष्ण ने (१६ वीं सदी में) खहर अंश अनंतत्व सूचक हो परिमित संख्या के धन ऋण व्यापार से कोई भी परिवर्तन को प्राप्त नहीं होगा ऐसा निर्धारित किया । अ/० + ब/क=अ/0+बx०/त*0%आ+0/0-अ/ तथा अ/०+ब/0=अब/०=अनंत इस प्रकार भारतीयों ने खछेद अथवा खहर( शून्य से भाग किया हुआ) को अनंत कह कर व्यवहार में उपयोग किया। वीरसेनाचार्य के धवळाटीका में ग्यारह प्रकार के अनंत को निर्देशित किया है: १.नामानंत, २.स्थापनानंत, ३.द्रव्यानंत, ४.गणनानंत, ५.अप्रादेशिकानंत, ६.ऐकानंत, ७.उभयानंत, ८.विस्तारानंत, ९. सर्वानंत, १०.भावानंत, ११.शाश्वतानंत जैनगणित में संख्या अर्थात जिसे वचन से निर्देशित किया जा सकता है । अंक अर्थात चिन्ह। मानों में गणितमान को संख्यात, असंख्यात, तथा अनंत आदि में विभाजित किया गया है। जैन अभिप्रायानुसार एक (१) संख्या नहीं है दो(२) से संख्याएँ (ऐकादीयागणणा,बीयादीया हवन्तिसंखेज्जात्रिलोकसाए.१६)। इन तीन प्रकार के गणित मान में संख्यात को जघन्य, मध्यम,और उत्कृष्ट आदि तीन रूप में भागित किया गया है । असंख्यात को परीत,युक्त,और असंख्यातासंख्यात स्थूल रूप में विभागित कर, इन्हें जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट रूप में पुनः भागित किया गया है। इसी प्रकार अनंत को परीत,युक्त और अनंतानंत तीन प्रकार से, इन एक-एक प्रकार में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भाग किए गए हैं। जघन्य और उत्कृष्ट कहने से एक ही संख्या निर्देशित हुई है। ईसा पूर्व २री सदी स्थानांगसूत्र में रेखा गणित का अनुसरण कर पाँच प्रकार के अनंत कहे गए हैं ऐकोत्योनंत, द्विधानंत, देशविस्तारानंत, सर्वविस्तारानंत तथा शाश्वतानंत। असंख्यात की गणना करने के लिए सर्वज्ञ को भी असाध्यकर हो तो भी उसे माना जा सकता है परन्तु अनंत के लिए कोई सीमा नहीं है। 438
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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