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________________ सिरि भूवलय लिए, इष्ट विषयों को समझने क लिए, विमर्शन करने के लिए, अनुशीलन करने के लिए, उपयुक्त ग्रंथ होने के कारण इस प्रकार के विस्तृत ग्रंथों के लिए आधार भूत गणित पद्धतियों का, विशेषज्ञों को चर्चा-परिचर्चा करनी चाहिए। ज्ञातव्य ही है कि गणित शास्त्र में स्थान निर्णय (place value) तथा शून्य को भारतीयों ने ही ढूंढ निकाला। ईसा पूर्व २०० से भी पहले शून्य को निर्देशित करता हुआ वृत चिन्ह भारत में दृष्टिगत हुआ है। लुप्त अंक को ब्याबिलोनिय, मायासंस्कृति में गुणा करने का चिन्ह अथवा किसी और चिन्ह का प्रयोग करने पर भी स्थान निर्णय के न होने पर गणित शास्त्र को आगे नहीं बढ़ाया जा सका । अमेरिका में दिखाई देने वाले मायासंस्कृति के लिपि में कालगणना तथा पंचाग दिखाई देते हैं। इसमें विंशतिगणना ( vigesimal) के होने पर भी शून्य को शंख के समान चिन्ह से सूचित किया जाता था। परन्तु स्थान निर्णय के ज्ञात होने के विषय में संपर्क आधार नहीं मिले। माया संस्कृति ईसापूर्व २५०-३०० से पहले का नहीं है यह निश्चित होने के कारण अभी तक जानकारीनुसार इन मायाजनवासियों की पूर्व संस्कृति कैसी रही होगी इस संदर्भ में अमेरिका खंड में कोई भी जानकारी प्राप्त न होने के कारण भी संपूर्ण रूप से विकसित माया संस्कृति के जन ईसा सन् १-२रे सदी मे किसी और देश से आकर वहाँ स्थापित हुए होंगें ऐसा अंदाज लगाया जाता है। भारतीय संस्कृति का इस माया संस्कृति पर प्रभाव पडा है ऐसा कहने के हेतु कुछ निर्दशन प्राप्त होने के कारण बहुशः गणित पद्धति को मायाजनवासियों ने भारतीयों से ही अंगीकृत किया होगा। इस विवादास्पद अंश को नज़र अंदाज कर दिया जाए तो भारतीय गणित ही दुनिया में प्राचीनतम गणित है कहा जा सकता ___ भारतीय गणित की परिभाषानुसार शून्य अर्थात, अभाव, तुच्छ, असंपूर्ण, और दोष आदि चार अर्थ हैं लेकिन अध्यातमक दृष्टि से देखा जाए तो शून्य का अर्थ, संपूर्ण माना जाता है। शून्य से गुणा करें या विभागित करें तो भी उसका अनंतत्व व्यक्त होगा ऐसा गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त, भास्कर, कृष्ण गणेश आदि महानुभावों ने कहा है । महावीराचार्य ने गणित सागर संग्रह में, एक से लेकर नौ तक संख्यानुसार ही शून्य भी एक संख्या है कहा है। शून्य से भागित किया जए तो अनंतत्व प्राप्त होगा ऐसा सातवी सदी के ब्रह्मगुप्त ने प्रप्रथम निश्चित किया ऐसा माना जाता है। महावीर ने नवीं सदी में शून्य से विभागित किया जाए तो संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होगा ऐसा गलत अभिप्राय व्यक्त किया है। ब्रह्मगुप्त ने ऋण अथवा धन संख्या को शून्य से भागित किया जाए तो तच्छेद होगा ऐसा -437
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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