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________________ सिरि भूवलय) प्रसाद जी की आसक्ति को भी इस कृति ने जागृत किया । यल्लप्पा शास्त्री जी के द्वारा प्रसारित इस काव्य के कुछ भाग प्रकटित हुए । कर्लमंगलं श्रीकंठैय्या जी इस प्रकटण के कारण बनें उनके निधन के पश्चात इस कृति के विषय में उतनी चर्चा नहीं हुई । अभी तो इस विषय पर बातचीत करने वाला तक कोई नहीं है ऐसा क्यों हुआ? सिरि भूवल्य को एक विश्व काव्य कहा जाता है । यह ग्रंथ किसी भी भाषा लिपि में नहीं है। केवल अंक हैं । दाएँ से बाएँ २७ खाने और ऊपर सेनीचे २७खाने इस प्रकार एक चक्र में ७२९ खानों के अनेक चक्रों से यह ग्रंथ रचित है। इन एक-एक चक्रों में केवल १ से लेकर ६४ अंक ही दिखाए देते हैं ६४ से अधिक अंक किसी भी खाने में नहीं होते । भट्टाकळंक मुनि द्वारा रचित संस्कृत भाषा का कन्नड व्याकरण ग्रंथ शब्दानुशासन के अनुसार कन्नड में ६४ अक्षर है। इस सूत्र का अनुसरण कर के ही इन चक्रों में लिखे गए अंकों को अक्षरों में परिवर्तित कर के एक रीति से पढा जाए तो कन्नड भाषा के सांगत्य छंद में साहित्य की उत्पत्ति होती है । ग्रंथ में कहेनुसार इन चक्रों को अनेक गतियों में अनेक बंधों में पढ़ा जा सकता है । इस प्रकार पढा जाए तो सिरि भूवलय के चक्र एक-एक अध्याय में एक-एक खाने में घूमते हुए नवीन नवीन साहित्य प्रकट होते हुए आगे बढ़ता है । इस प्रकार चक्रों के अंकों को अक्षरों में परिवर्तित कर पढने पर उत्पन्न हुए कन्नड सांगत्य पद्यों को लिख कर, प्रति पद के मात्र प्रथम अक्षर को मिलाकर पढते जाए तो प्राकृत भाषा के शुद्ध साहित्य का, उसी प्रकार प्रति पद के मध्याक्षर को मिलाकर पढते जाए तो संस्कृत भाषा साहित्य की उत्पत्ति होती है । इस प्रकार अनेक रीति के अक्षर संयोग से अनेक भाषा साहित्य की उत्पत्ति होती है। कन्नड ,प्राकृत, संस्कृत के अलावा तनिल, तेलगु, शूरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी, अर्धमागधी, अपभ्रंश, आदि भाषा साहित्य को इस ग्रंथ में पढा जा चुका है । ग्रंथ का कोई भी भाग यदि नष्ट हो जाता है तो अन्य अध्याय के चक्रों की सहायता से नष्ट हुए अध्याय को फिर से रचा जा सकता है । ग्रंथ पूर्णतः गणित पर आधारित होने के कारण एक चक्र से उसके पहले के चक्र को प्राप्त करना संभव है ऐसा ग्रंथ कर्ता का ही कहना है। आकाश विज्ञान, लौह विज्ञान, -409 - 409
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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