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________________ सिरि भूवलय तत्पश्चात मैसूर विश्व विद्यालय के उपकुलपति श्री एन. ए. निक्कं जी ने इस पुस्तक को विश्वविद्यालय के प्रकटण शाखा के द्वारा प्रकाशित करने का प्रयास किया । इस से सिरि भूवलय का जनता संस्करण की हस्त प्रति ने विश्व विद्यालय के भव्य इमारत के भीतर दो वर्षों तक सुख चैन की नींद ली और कुछ नहीं किया । इसी संदर्भ में मैसूर विश्वविद्यालय के कन्नड पुस्तक प्रकटण सलाह मंडली ने डॉ. के.वी.पुटप्पा जी के अध्यक्षता में सभा में सर्वानुमति से सिरि भवलय विश्व विद्यालय से प्रकाशित होने की अर्हता नहीं रखता, ऐसा निर्णय दिया । इस ग्रंथ के लिए देश के विद्वानों के द्वारा मौन साधना और उपेक्षा करना, इस संदर्भ में आज के कन्नडिगाओं को ही कुछ कहना होगा । इस दुखदायी विषय को लिखते हुए मुझे भी दुख हो रहा है परन्तु कन्नडिगाओं को वास्तवांश की जानकारी देने के कर्त्तव्य से ही मैं ग्रंथ प्रकटण की कर्म कथा का विवरण कर रहा हूँ। विनती कर रहा हूँ। इस पुस्तक के लिए मुद्रण के घर का मार्ग और दरवाजा बहुत दूर है। मार्ग भी अति दुर्गम और पथरीला है । फिर भी इस दुर्गम और कष्ट कर मार्ग पर चलने के लिए आगे बढने के लिए कन्नडमाता का आशीर्वाद प्राप्त हो ऐसी प्रार्थना करता हूँ। भारद्वाज मई १९७५ सं दे. वे. कृष्ण मूर्ति ___ कन्नड का कामधेनु नाम से वर्णित सर्वभाषामयी सिरि भूवलय में समस्त वेद शास्त्र पुराण स्तोत्र पाठादि पुष्पायुर्वेद शिल्प ज्योतिष्य यंत्र शास्त्रादि रस सिद्धि तथा अणु विज्ञान आदि प्राचीन वर्तमान भविष्य समस्त विषय लाखों करोंडों श्लोकों में समाहित है ऐसा वर्णित है । प्रजावाणि ६-२-१९८३ के. आर. शंकर नारायण राव सिरि भूवलय -१९५० से १९६४ तक केवल कर्नाटक में ही नहीं बाह्य प्रदेशों में भी कुतुहल उत्पन्न करने वाली कृति है । तात्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र 408
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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