SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरि भूवलय रसभस्म पादरस (पारा) को भस्म बनाय जाए तो, उसे फूलों से बरसाया जाए तो अनेक छिदूरप बनेंगें वे छिद्र २१२,५२८०,०२५४,४०००,००० के बराबर अनुरूप में भागित होंगें, इनमें एक अणु के बराबर समस्त रोगों के लिए औषधी के रूप में उपयोगी होगा ऐसा कहते हुए कवि औषध को चित्रवल्लि आदि जडों से सिद्ध(तैयार) करने की विधि का विवरण करते हैं यशवागि ओन्दरोळोन्दक्के बरेयदे। होसपुटदोळु भस्मवागी।। कुसुमायुर्वेदद महिमेय सरुव । असदृश्यकाव्य भूवलय ॥ नित्ययौवनवित्तु वीर्यरक्षणेमाळ्व । अक्षरांकद सिद्धरसद ॥ रक्षणे भेषजम दौषधरिद्धि । यक्षय प्राणरक्षणेयल। रसपक्ववागलु पुष्टदरसदिन्दा । होससिद्धरसवादंते।। होसवैद्यदानद फलदिंदात्मगे । होसदेह प्राप्तवागुवुदु ॥ इस प्रकार कहते हुए पक्व हुए पादरस की धूल से समस्त व्याधियों का परिहार करने की विधि को कहते हैं । जिनवृक्षों के अतिरिक्त अतिशय कारण के , मूल्ले, गंधमाधव पुष्प, नवगंध माधव बळ्ळि (बेल,लता) चित्रवल्लि संपिगे, गंधराज, कमल की जातियाँ, काम कस्तूरी गंजिलु, मालति, मुडिवाळ, पगडे, वंदूक, ताळे, पादरि, आदि वस्तुओं के सम्मिलन से प्राप्त होने के प्रकारों का विवरण करते हैं । आगे कहते हुए कनकव धवलगेयंक (१०-११२) थणथणवेने श्वेतस्वर्ण(१०११६) कहते हुए सोने को सफेद (प्लैटिन) करने की प्रक्रिया की जानकारी देते चित्रविचित्रवादौषधर्धिगळंटु । हत्रके बंदु सारिरुव ॥ चित्र वल्लिये मोदलाद मूलिकेगळिं । सूत्रिसि ग्रंथके तनु तां ॥ तत्क्षण हदिनेंट साविर श्लोकद । सूत्र वैद्यांकद क्रमदि ॥ चित्रिसि हदिनेंटु साविर जातिय । उत्तम हूविनिं रसगी॥ 397
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy