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________________ सिरि भूवलय भी स्वयं को तीर्थंकर मान कर केवली ज्ञानी मानने के कारण उनकी दिव्य ज्ञान शक्ति के लिए शायद यह कार्य करना संभव हुआ होगा। सिरि भूवलय में सभी ज्ञान-विज्ञान रथ को खींचते हुए आगे बढाने वाले गणित है । यह गणित पद्धति आज की “दशवर्ग" पद्धति न होकर नवमांक पद्धति है । दशक पद्धति में भिन्नांश गणना सौ में आधे से कम हासिल को छोड देते हैं आधे से थोडा अधिक आए तो उसमें अदृश्य पूर्णत्व को मिला कर गणना की पद्धति है । इससे विज्ञान साधना के फलितांश में फेर-बदल होते हैं यह ज्ञातव्य ही है । नवमांक गणित पद्धति २००० वर्षों से पहले भारत में मौजूद पद्धति ही है । सिरि भूवलय में कुमुदेन्दु नवमांक गणित पद्धति को विस्तृत रूप से कहने के साथ साथ अपने नवमांक गणित में ही अंकमयी ग्रंथ की रचना भी करते है । इस पद्धति के अनुसार सौ में आधे से कम हासिल को छोड़ कर, आधे से थोडा अधिक आए तो उसमें व्यर्थ का मूल्य देकर पूर्ण रूप मानने का अक्रम कोई भी नहीं है। सिरि भूवलय में दिए गए गणित प्रक्रिया को समझने का प्रयत्न करना होगा । रसविज्ञान सिरि भूवलय में रसपादप्रक्रिया, दांपत्यविज्ञान, लोहविज्ञान, अणुविज्ञान, परमाणुविज्ञान, आकाश विज्ञान, जलविज्ञान, आदि अनेक विषयों को गणितक्रमानुसार समाहित कर निरूपित किया गया है। इस दिशा में वैद्यविज्ञान को अतिशय रीति से वर्णित किया गया है । वैद्य विषय इस प्रकार से हैं रसमणि:- सिरि भूवलय में प्रारंभ में रसमणि निर्माण की विधि को बताया गया है । उसके अनुसार १००८ पँखुडियों वाले सात "जल पद्म" सोलह “स्थल पद्म’ तथा सात पर्वत पद्म आदि को पीस कर, पारे के मणि पर, तैयार कल्क, (पीसकर तैयार पेस्ट) को आठ बार मुलम्मा ( परत दर परत आठ बार ) चढा कर ध्यानाग्नि ( ध्यान से प्रदीप्त अग्नि से अग्नि जलाकर) पुट (अंगारो से आच्छादित या चारो तरफ अगारो को रख कर बीच मे उस मणि को रखकर दग्ध करना) रखें तो रस मणि बनकर तैयार होगा। जिसकी सहायता से समस्त इष्टार्थ को प्राप्त किया जा सकता है । 395
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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