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________________ सिरि भूवलय इस प्रकार के साधना में प्रयत्नशील श्री जार्जगामोव जी ने “वन,ट्र, थ्री इनफिनिटि” नाम के ग्रंथ में प्रायोगिक रूप से कुछ चित्रों को दिया है। उसमें अपने प्रयत्न को विफल हुआ भी लिखते हैं परन्तु श्री जार्ज गामोव अपनी जो भी विफलता को स्वीकारते हैं उसे सिरि भूवलय गणित क्रमानुसार सफल कर, उसकी साध्यता को मनद१ (मन को छूने वाला, समझने वाला) कर देता है। प्रजावाणि २८-६-१९६४ . कर्ल मंगलं श्रीकंठैय्या आदि जिनों का प्रदेश कन्नडप्रदेश । उनकी भाषा कन्नड । उनको कन्नड ऋषि कह कर अपने धर्मोपदेश को कन्नड सिरि मातु (कन्नड भाषा) में दिया ऐसा कहते हैं आदि भूवलय के कर्ता गोम्मटदेव ने उसे कन्नड-संस्कृत-प्राकृत भाषारूप में इन तीन भाषाओं का प्रयोग कर रचा है ऐसा कवि संपहि अइ भूवलय कत्तारोवइट्ट ॥ सिरिगोम्मडदेव विरइय कम्मड-सक्कद-पाहुडगीदा । विदिय महाधियारांतरिय सत्तम हकभंग ऐत्तेव रासीण परूवनटं उत्तरसुत्तं भणिस्सामो कहते हैं । और फिर इसी प्रकार से स्वयं इन तीन भाषाओं को मिलाकर, इसे पद्धति ग्रंथ रूप में रचा है कहकर ऐसा कहते हैं करुणेय गुरुगळेवर पदभक्तियिं । बरुवक्षरांककाव्यवनु ॥ विरचिस प्राकृत-संस्कृत-कन्नड । वेरसि पद्धतिग्रंथ दया ॥ इस ग्रंथ को कुमुदेन्दु ने एक अंतर्मुहूर्त मे ही रच दिया । एक अंतर्मुहूर्त का अर्थ जैनों की भाषानुसार ३७५३ उच्छस्वास का समय कहा जा सकता है । इतना समय भी न लेते हुए, अपने ग्रंथ को गणित रूप में रच कर समाप्त कर दिया, ऐसा कवि कहते हैं । गणधर रूपी गौतम को वीरोपदेश को ग्रंथस्थ करते समय दिन रात का समय लगा ऐसा पुराणों में कहा गया है । यह गणधर श्रुत केवली थे। कुमुदेन्दु 394
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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