SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - सिरि भूवलय - अनुबंध पत्रिकाओं में उल्लेख १. प्रभात २५-७-१९५० अंकाक्षर विज्ञान बंगलोर विश्वैश्वर सर्कल श्री एम. वाय. धर्मपाल एंड ब्रदर के सर्वार्थ सिध्दि कंपनी ने अपने प्रचारक सम्मानीय पंडित यल्लप्पाशास्त्री जी को अंकाक्षर विज्ञान के प्रचार के लिए भरतखंड के नाना प्रांतों में भेज रहे हैं । शास्त्री जी पिछले १९४२ फरवरी में लगभग १५० यात्रिओं को लेकर अपने अंकाक्षर विज्ञान के साहित्य प्रचार के लिए स्पेशल रेल्वे में ८१ दिनों तक भरत खंड का संचार कर अपने प्रवास में सैकडों सभाओं का अयोजन किया है। इसके लिये अर्ध लाख रूपये व्यय हुए और हजारों भारतीय को इस विज्ञान के मर्म को समझने में सहायता की है। वहाँ से आने के बाद इस वर्ष ३३वाँ कन्नड साहित्य सम्मेलन कोल्हापुर में आयोजित होने पर अपने प्रवास को आधार बना कर अपने भाषण के द्वारा १० हजार महारष्ट्रियनों और कन्नडिगाओं को तृप्ति प्रदान की है। इससे प्रसन्न होकर प्रसिध्द वीरशैव के प्रधान श्रीमंत स्वागत समीति के कार्याध्यक्ष श्री सी. एम. वारद, महिला शाखा की अध्यक्षिणी श्रीमती आर. सी. जयदेवी, माता लिगाडे, ने अनेक पत्रों को भारत सरकार के केन्द्र तथा राज्य सरकारों को भेजा । इससे प्रोत्साहित होकर कंपनी ने सोलापुर, मीरज, जयसिंगपुर, गळतिगे, कोल्हापुर, बेळगाम, धारवाड हुब्बळ्ळि इत्यादि प्रदेशों में अपने प्रदर्शन भाषणों से एक लाख लोगो को ज्ञान दान किया है। इस विषय को महाराष्ट्र के सतार प्रकाश, सोलापुर के सुदर्शन, सोलापुर समाचार, कोल्हापुर का सत्यवादि, बम्बई की लोकसत्ता, नवभारत, हुब्बळ्ळि का नवयुग, संयुक्त कर्नाटका, मंगलूर का विवेकाभ्युदय, सूरत का हिन्दी जैन मित्र, बंगलोर का ताई नाडु, विश्वकर्नाटका इत्यादि महा पत्रिकाओं ने विशेष शीर्षक देकर कॉलमों को ध्यान में रखे बिना प्रकाशित कर लगभग १० लाख लोगो में इस विज्ञान को प्रसारित किया है। श्री शास्त्री जी अपने प्रदर्शन भाषण में लगभग १० बढे नक्शों के समीप लोगो को ले जाकर प्रत्येक नक्शे की महिमा का वर्णन कर, अपने द्वारा रचित सुलभ शैली की सांगत्य को बताते हए प्राथमिक तथा विश्वविद्यालयों को लाभांवित करने वाले इस अंकाक्षर विज्ञान की जानकारी देते हैं। =372
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy