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________________ -सिरि भूवलय ॥२३३॥ दानगळननेल ज्ञानदोळडगिसि । आनन्दवनेल्ल तरिसि ॥ शाने पुण्यवनीव पुष्पवृष्टियनीडु । वा नम्र प्रातिहाऱ्यान्क लक्षणवाद चामर अरवत्नाल्कु । अक्सर अरवत्नाल्कु ॥ * इक्नेयमरदनक नवम दिव्यध्वनि । रक्षिपुदु ओम् ओम्बत्तुगळ ।।२३४|| ॥२३७॥ ॥२४०॥ तक्षण कर्म विनाश घकटवादेरडु काल्नूरु रमेयद्वादश गणवे लक्षिप प्रातिहाऱ्याष्ट श्रीक्षण मन्ग प्रातवु अक्षय पद प्रातिहार्य ॥२३५|| सिक्षिप हन्नेरडन्ग ॥२३८॥ ईक्षिप भामन्डलान्क ॥२४१।। अमरदन्क हन्नेरडु ॥२४४।। अमरदष्टु मन्गलवु ॥२४७॥ अमरदन्क सान्गत्य ॥२५०।। सिक्क्षण लब्धान्क शून्य ॥२३६।। हदेळु मूवत् एरडम् ॥२३९॥ लक्ष्यद दुन्दुभि नाद ॥२४२॥ अक्षर वेद हननेरडु ॥२४५।। शिक्षण काव्यान् क वलय ।।२४८।। कुक्षि मोक्षद सिद्ध बन्ध ॥२५१॥ अक्करदन्क भूवलय शिक्षणग्रन्थ भूवलय ॥२४३।। ॥२४६॥ ॥२४९।। ॥२५२॥ ॥२५३॥ ॥२५४॥ ||२५५|| दुरितव हरिसुव अष्ट मन्गल द्रव्य । वेरसि प्रात प* दवदनु । परमात्म पादद्वयद एन्टमर । बरेदिह पाहुड ग्रन्थ तिरेय जम्बूद्वीपद् एरडु चन्दरादित्य। रिरुवष्ट रूपद* अमल।। सरसिजावर काव्य गुरुगळ् ऐवर दिव्य । करयुग दानान्क ग्रन्थ भारत देशदमोघवर्षनराज्य । सारस्वतवेम्बन्ग ।। सारा न्*क गणितदोळझर सक्कद । नूरु साविर लक्म कोटि याहातिराप्नसहासि एन्टु (अष्टम)मुक्काल । साविरकेरडे ऊन ।। स्त* र अन्तर हदिनेछु साविगळ्गे । सार(नेर)नाल्वत्नालकुम् ऊनम् ८ने ऊ ८७४८+अन्तर १६९५६=२५७०४=१८९ अथवा आ दिन्द 'ऊ' वरेगे १,२६,७३८+ऊ २५७०४=१,५२,४४२ ||२५६॥ ॥२५७॥ 371
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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