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________________ ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ ||५|| - सिरि भूवलय चतुर्थ 'ई' अध्याय : इष्टोपदेशव नष्ट करमाम्शव । स्पष्टदोळ् अरहन्तरु श*री ॥ अष्ट्गुणान्वित सिद्धर समरिसिद । अष्टमजिन सिद्ध काव्य यशस्वतिदेविय करविडिदादिय । वृषभजिनेश्वरन काव्य ॥ अश री*र सिद्धत्व वड? बाळुव काव्य । ऋषवम्शदादि भूवलय मूरुवेळेयोळु सामायिकदेळुनिलव । वीरजिनेन्द्र दारियदम् ॥ सेरि प* पद्धतियतिशयदनुभव । सारभव्यर काव्य । लक्षणवरियुत स्वसमयवद सारी अमरदन्कदोळ् बेरे सि ॥ शिक्झयोऐदिन्द्रिय मत्तु मनवनु । लक्षणदिम् स्तब्धगोळिसि तनुवनु मरेयुत जिनरूपे नानेम्ब् । घन विद्येयनुभववागे ॥ म* नवे सिम्हासनवागिरलमलात्म । जिननन्ते कमलदासनदि घनवय्भवदिन्द कुळितु । ॥६॥ जिननन्ते कायोत्सर्गदलि ॥७॥ अनुदिनदभ्यासबलदि दिनदिनयोग हेचचुतिरे ॥९॥ इननन्ते तपिन ज्योति ॥१०॥ घनवागि बेळगुतिरलु तनगे ताने ब्रम्हनेनुव ॥१२॥ जिनधर्मदनुभव बरलु ॥१३॥ ऋणद देहव मरेतिहरु एणिकेगे बारदध्यात्म ।।१५।। घनप्रतिक रम तानागे ॥१६॥ चिनुमय मुद्रेयन्दोदगे घनरत्न मूरर बेळकु ||१८॥ तनगे ताने बन्दु बेळगे ॥१९॥ मनुमथनुपटळ करगे जिननाथनोरेद भुवलय ॥२१॥ तनुविनोळात्म भूवलय ॥२२॥ वेनुतिन्तु निलुव कुळिरुव तनुवदे स्वसमय सार न्वदन्कदन्ते स्वयम् परिपूरणद । अवयवददे शुद्ध गुणद ॥ अवतार स्थानद हदिनाल्करन्तद । चिनुमय सिद्ध सिद्धान्त तनुवनु परवेन्दरियुत आ पर । दनुरागवनु तोरेदाग ॥ जिन र सिद्धर रूपिननुभव हेच्चुत । तनु रुपिनन्तात्म रूप करगुवुदासर बरुव बन्धवदिल्ल । निराकुलितेय पद्म वे*ळु || सरमालेयन्ते तन्नेदेयलि काणबाग । अरुहन पददन्ग गुणित त्रतरवाद अद्भुतपरिणामद । सरस सम्पदवेल्ल अवन* ॥ हरुषवनेरिप समयद लब्धियु । बरुवाग आ अन्तरात्म बरुवाग अवनन्तरात्म ॥२९।। परिणाम लधियागुवुदु ॥३०॥ बरलरहन्त तानेनुव हरुषवर्धनकादि एनुव ॥३२॥ बरे बरुवाग तन्नात्म ॥३३॥ गुरुवादे जगके एन्देनुव अरहन्तरनु कन्डेनेनुव ॥३५॥ परिशुद्ध नाने एन्देनुव ॥३६॥ परमात्म पदवडनुव । गुरुपद दोरेयितेन्देनुव ॥३८॥ सिरियायतु ज्ञानवेन्देनुव ॥३९॥ परम मन्गल नाल्कु एनुव ||८|| ॥११॥ ॥१४॥ ॥१७॥ ||२०|| ॥२३॥ ||२४|| ॥२५॥ ॥२६॥ ||२७॥ ॥२८॥ ||३२॥ ॥३४॥ ॥३७॥ ॥४०॥ 253
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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