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________________ ॥१९॥ ॥२०॥ ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२५॥ ||२९|| (सिरि भूवलय) लावण्यदन्ग मेय्याद गोम्टदेव। आवाग तन्न अणिगे।। ईवाग चक र बन्धद कटिनोळ्कटि। दाविश्व काव्य भूवलय। णिजद हत्तनु आत्म धरम्वागिसिकोन्ड। भजकर्गे श्रीविन्ध्यगिरिय। निजत् ववेळ दवन्नित्त। विजयधवलद भूवलय ट्क् किनिसिल्लदा हत्तनु निजदिन्दा तक्कजनके पेल्दमहिम।। सिक् करु सम्*सार सागरदोळ्गेम्ब। चोक् क कर्नाटक वलय टिदि अणुभाग बन्धदे प्रदेशवहोक् कु।विदियादि हदिनाल्क होन्दि। अनल्लिनि* धियागि शिवसौख्य होन्दिद। पदवे मन्गल कर्नाटकवु यशस्वतिदेविय मगळाद ब्राम्हिगे। असमान कर्नाटकद।। रिसियु नित्*यवु अरवत्नाल्कक पर। होसेदअन्गय्य भूवलय रसद् ओम्कार भूवलय ॥२४॥ यशदेडगय्य भूवलय् रस मूरु गेरेय भूवलय ॥२६॥ रिसिरिद्धि यरवत्तनाल्कु ॥२७॥ - यशवुनाल्कारदु हत्तु ॥२८॥ रससिद्धिया हततु ओम्दु करुणेयम्बहिरन्ग साम्राज्यम्लमिय। अरहनु कर्नाटकद।। सिरिमात य्त्न दे ओम्दरिम् पेळिद।अरत्नाल्कन्क भूवलय. ज्यसिद्धियादि आ ओम्देअक् षर ब्रम्ह नयदोळग्अरवत्नाल्कु।। जयिनगें सम्य त्नदाकलेयतिशय । स्वयसिद्ध् भन्गभूवलय जाति जरा मरणवनु गुणाकार। दातिथ्य बरे भागहार। ख्यातिय भन्गदोलरिवम् विख्यात । पूतवु पुण्य भूवलय पदपद्मदोलगणन्काक्षर विज्ड़ान ।अदर गुणाकार मग्गि।। वदगि बन्दाध्*यानियरिविगे सिलुकिह ।सदवधिज्ड़ान भूवलय णवपददन्कदिम् गणिसलोम्बत्तम्। अवरन्कवनुलोम भन्ग।। दवतारव यत्नपूर्वक भागिसे। अवनिगे ऐळु भूवलय । ट्कद सम्योगदे भन्गवागिह हत्तु सकलान्क चकरेश्वरवु। अकलन्वाद हत्तन् कद ओ मुन्दे। प्रकट्द गुणकार बिन्दु टकवनु महावीरनन्तर्मुहूर्तदिम्। प्रकटिसे दिव्य वाणियलि।। सकलाक् परवति दिदिह गौतम। नकलन्क हन् एरडुअन्ग.. सर्वार् थसिद्धियेन्देनलु अक घरभन्ग। निर्वाहदोळगन्क भन्गम्।। सरवान्क यो गदोळ् अरत्नाल्कननेल्ल। निर्वहिसलु हत्तु भन्ग म्मवादा हत्तम् बळेसुव(कालदे) योगदे। निर्मलम् शुद्ध सिद्धान्त ।। धर्मव हरडुव आगि न जिनपाद । शर्मर सिद्ध भूवलय सागरद्वीपगळेल्व गणिसुव । श्रीगुरु ऐदवरन्क।। नागव नाकव नरकव मोक् षव ।साघन वागिसिद् अन्क राशियोळोम्दम् तेगेयलाराशियु । घाशियागदले तुबिरुव ।। श्री शानन् तद पद विह सम् ख् यात । दशोयनन्त सम्ख्यात दिशियोळु बन्द अनन्त सम्ख्यातद । वशदोळसम्ख्यातवदम् ।। रसकमलगळेळु का दिरिसिद दिव्य । रससिद्धि जलपद्मगन्ध.. ट्वणेयोळिरुवन् क दोळु कूडिद् अरवउ ।सवियन्क वेन्टेन्टवरोळ् ।। अवतिह श्रीपद्म* हदिनारु स्वपनद अवयवस्थलपद्मगन्ध.. ट्वणेयोळिरुवन्कदोळु कूडिद् एन्टेन्टु । अवनु मत्पुनह कूडिदरे ।। नवपद्मव्अद रिन्द बरुवन्क ऐळुम् । सविदरे बेट्टद पदम् .. ॥३०॥ ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ ||३९।। ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ ॥४३॥ 179
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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