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________________ सिरि भूवलय विश्ववद्यालय और संशोधन केंद्रो का सहयोग प्राप्त नहीं था। राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग में मुलाकात, इन तीनो मे से कोई भी मार्ग को अपना कर ही संभव हो सकता था । नहीं तो राष्ट्रीय पत्रागार से सिरि भूवलय की जानाकारी का मिलना असंभव था । सिरि भूवलय ग्रंथ के विषय में भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबु राजेंद्र प्रसाद जी ने स्वयं अपनी आसक्ति के कारण कर्नाटक के यल्लप्पा शास्त्री और कर्लमंगलं श्रीकंठैय्या जी के द्वारा अनेक अभिलेखों को मंगवाकर राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग में संग्रहित किया था ऐसा प्राचीन विद्वानों और पत्रिकाओं से ज्ञात हुआ था। यह जान कर अति आनंद हुआ कि इन अनेक जानकारियों का संग्रह - ब्यौरा पुरातत्व विभाग में सुरक्षित है । परंतु ऐसे अमूल्य जानकारियां पुरातत्व विभाग में मौजूद है यह विषय किसी को भी नहीं ज्ञात थी । जानकार कुछ लोगों को भी उसे प्राप्त करने की विधि ज्ञात नहीं थी । दिल्ली के पुरातत्व विभाग से मुलाकात को तय करने के लिए मैने वहां के निर्देशक के साथ पत्र व्यवहार आरंभ किया फलस्वरूप प्रवेश निषिद्ध सिरि भूवलय संग्रहित, अपरूप हस्त प्रति संग्रह विभाग में मुझे मुलाकात करने का अवसर मिला । २७-२-२००६ और २८ - २ - २००६ को मैने राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग के खासगी संग्रह विभाग में, कन्नड के स्वार्थ रहित निष्ठावंत संशोधक, सिरिभूवलय के प्रचार-प्रसार के लिये ही अपना जीवन समर्पित करने वाले उन महानुभवों के द्वारा संग्रहित अपार अभिलेखों को देखकर विस्मित हो गया। किसी विश्ववद्यालय की योजना से न कम, डॉक्टरेट पद से भी अधिक उनका अद्भुत कार्य किसी के ध्यान में न आना यह एक विषादनीय स्थिति लगी। उस अमूल्य हस्तप्रति भंडार को देखते ही मेरे मन ने उन महान संशोधक, पंडित, पंडित यल्लप्पा शास्त्रीजी, कर्लमंगलं श्रीकंठैय्याजी और इतिहासकार एस श्रीकंठशास्त्रीजी और बेरळच्चु टंकणयंत्र (टाईपराइटर) पितामह श्री अनंत सुब्बरावजी को नमन किया । मैंनें उसी दिन उन सबका परिशीलन कर, आवश्यक जानकारियों का संग्रह कर सूक्त टिप्पणियों को बना लिया वे हमारी योजना में सहायक हुई। 14
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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