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________________ सिरि भूवलय सृजन होता है । इसके उपरांत प्रथम खंड के १२७० चक्रों से १४७३० चक्रों के साथ इस प्रथम खंड के साहित्य से और ५३५२०० श्लोकों वाले ८ के बराबर साहित्य भी एक के साथ एक सृजित होता है। इस प्रकार यह ग्रंथ ६००००० कन्नड श्लोको वाला संसार का सबसे अधिक वृहद ग्रंथ बनता है। ऊपर कहे गए १२७० चक्रों के लिए कुल ध्वनियाँ ९२५८३० बनती है और ४९० लाख शब्दों के बराबर साहित्य का सृजन होना शेष है। ऊपर कहे गए मंगल प्राभृत (प्रथम खंड) का केवल ३३ अध्याय ही प्रकट हुए है। अभी और इस खंड में २६ अध्याय और शेष ८ खंडो के बराबर महा साहित्य का प्रकट होना शेष है। . ११. इसके उपरांत इसी प्रकार से आने वाले कन्नड श्लोकों के प्रत्येक पद्य के प्रथम अक्षरों को एक क्रमानुसार मिला कर पढे तो अट्ट विह कममवियला प्राकृत भाषा की भगवद् गीता के साहित्य की उत्पत्ति होती है १२. इसके उपरांत इसी प्रकार प्रत्येक पद्य का २७ वें स्थान के अक्षरों को मिला कर पढे तो 'ओंकार बिन्दु समुयुकतं' संस्कृत भाषा के भगवद् गीता की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार ११ अध्यायों के कन्नड सांगत्य पद्यों में प्राकृत, संस्कृत साहित्य को समाहित हुआ देखा जा सकता है । १३. इसमें संपूर्ण ग्रंथ में पूर्ण पद्यों के बीच, जहाँ-तहाँ पाद पद्य आते हैं उदाहरण के लिए पहले अध्याय के १२ से लेकर १८ पद्य । ये पद्य उनके ऊपर के पद्यों के प्रास (तुक) में मिल, अंत में विशेष पाद-पद्य कहे जा सकते १४. आगे १२वें अध्याय के २६वें पद्य से प्रत्येक अध्याय में भी "..” चिन्ह के बीच रिदध सिद धिगे आदिनाथरु अजितर गददुगे एततु आनेगळु मुददिनि सयादवाद ऐसा अश्व गति में अलग-अलग साहित्य प्रवाह रूप से प्रकट होते हैं। १५. इसके उपरांत १९वें अध्याय में पहले कहे गए प्राकृत-संस्कृत अश्व गति के अंतर साहित्य के साथ प्रत्येक पद्य में भी ४ स्थानों पर कुल १० अक्षर 135
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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