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________________ (सिरि भूवलय इसकी असमग्र प्रति को ही देखा होगा, लगता है । इस विषय के बारे में थोडा सोच-विचार किए कट्टी नागराज देवप्पा के कहेनुसार कुमदेन्दु शतक के दोड्डैय्या का भुजबलिचरित धवल प्रशस्ति, जिन सेन का महापुराण इत्यादि ग्रंथों के श्लोकों के लेकर यह ग्रंथ कवि भी कुमदेन्दु भूवलय, यलवभू, नाम के आवश्यक पदोंको मिलाकर सृजित प्रक्षप्त साहित्य बना है ऐसा लिखतें हैं। ( सिरि भूवलय मूल प्रति क्या हुई? प्रजावाणी ३०-१२-१९७०; Siri Bhoovalay Jayakhyana Bharata Bhaga vadgita, Anantharanga Prathishtana Bangalore ५६० ०७६, १९९७ p. ४८) इस शतक ग्रंथ की रहस्यता को बढाती है। कुमुदेन्दु शतक का अस्तितव काल, कर्तृत्व आदि समस्या कुछ भी रही हो सिरि भूवलय का कर्ता कोई कुमुदेन्दु है, ऐसा विचार वह भी, यह मध्य काल की साहित्य कृति है ऐसा विचार अबाधित तथ्य है। उक्त लिखित अनेक कुमदेन्दुओं में सभी अलग-अलग है ऐसा नहीं कह सकते। एक ही को अलग-अलग कवियों ने अलग-अलग समय काल में उल्लेखित किया होगा ऐसा मुमकिन है । संस्कृत और कन्नड साहित्यों के आधार से ज्ञात कुमुदेन्दु नाम के इतने व्यक्ति होते हुए भी जैनेन्द्र वर्गों के प्रसिध्द परामर्श ग्रंथ जैनेन्द्र सिध्दांत कोष (१९७०) में एक भी कुमदेन्दु की क्यों नहीं चर्चा की, यही आश्चर्य जनक संगति है। सिरि भूवलय कर्ता कुमुदेन्दु ___अभी तक चर्चित अनेक कुमुदेन्दुओं में से सिरि भूवलय के कर्ता एक तो होना ही चाहिए या फिर यह कुमुदेन्दु कोई और ही है ? । सिरि भूवलय में इसके कर्ता ने स्वविचार कुछ इस प्रकार कहा है, कवि स्वयं को कुमुदेन्दु मुनि (९-१९७), कुमुदेन्दु गुरु, (१०-२-७३), कुमुदेन्दु (१०-४१), कुमुदेन्दु यति (१६-२१४) इस प्रकार कहते हैं । जैन यति हैं यह तो स्पष्ट है। स्वयं को स्वयं की कृति में समाहित करते हुए अपना परिचय कराते हैं शुभद गुरुवर वीरसेन के शिष्य कुमुदेन्दु गुरु विरचित काव्य (१०-७३) कहते हुए जानकारी देते हैं । माता-पिता के नाम का कहीं भी विवरण नहीं देते = 110
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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