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________________ =( सिरि भूवलय - के सिरिभूवल्य के कर्ता कुमुदेन्दु को अन्वय कर विचार लिखा होगा लगता है; माघ णंदी प्रस्तावित व्यक्तिक जीवन साधना के अंशों को स्वयं किसी तरह संग्रहित कर जोडा गया है लगता है; ऐसा जोड नहीं किया होगा तो यहाँ कुछ इति वृत की रुकावट होगी कहना होगा। कुमुदेन्दु शतक के कर्ता देवप्पा चंद्र प्रभचरित नाम के सांगत्य ग्रंथ को लिख कर दोड्डैय्या के पिता (सन् १५८९) करणीकतिलकनू जिन पुराण कथागम निपुणनु बने देवप्पा ही है जानने की संभावना है (सु. सन् १५५०-६०) क्योंकि शतक(द) में कवि विषयक वृत (समाचार) आदि ब्रह्म विनिर्मितामल कह उभय समान वृत हो कर कृति कर्ता और कृति नामों में स्थान मात्र का अंतर किया गया है। इसी कारण इतिवृत विचार को परामर्श करें तो माघणंदी के गुरु कुमदेन्दु की स्तुति को आधुनिक बने देवप्पा विस्तार पूर्वक कर वहाँ कुछ-कुछ अधिक विबरणों को क्यों संग्रहित किया और उनको क्यों इस समय के सिरिभूवल्य के प्रस्ताव में आने के समान किया इस प्रश्नों के उत्तर को ढूँढना होगा। कुमदेन्दु शतक में दोड्डैय्या के संस्कृत भुजबलि चरित का और अन्य ग्रंथों से श्लोकों को निकाल कर अन्य जैनाचार्यों के नाम आने पर कुमदेन्दु नाम को मिलाकर रचित शतक (?) होने के कारण भूवलय के समय को निर्धारित करने में इससे कोई सहायता नहीं मिलेगी ऐसा एस. श्री. कंठैय्या शास्त्री जी अपना अभिप्राय देते हैं (अभिनंदन १९५६)। कुमुदेन्दु शतक का अस्तित्व, कर्तृत्व, स्वरूप सभी बहकाल से जिज्ञासा का विषय बना हुआ है । तिरूमले ताताचार्य शर्मा और के स्पंदगिरि राय के बीच इस संबंध में कुतुहल चर्चा होने का भी, शर्माजी इस संबंध के लिए पंडित येल्लप्पा शास्त्री जी से विचार विमर्श करने का भी, लिखित प्रमाण पत्र मिलता है। शर्मा जी ने पंडित जी से २-७-१९५३ में इस शतक के असमग्र प्रति को मांग कर प्राप्त किया (चिक्क गद्य कन्नड में ; ४९ संस्कृत पद्य; तत्पश्चात ९२ से १०२ तक ११ संस्कृत पद्य) इसका भी उल्लेख उस लिखित प्रमाणपत्र में मिलता है। लेकिन शर्मा जी के घर में उनके सुपुत्र श्रीमान तिरुमले श्री रंग चार्य के द्वारा मुझे प्राप्त एक कागज़ में बहुत अशुध्द रूप से लिखा हुआ आदि कन्नड गद्य और १३ पद्य मात्र मिलें । इस शतक का शुध्द और समग्र हस्त प्रति उपलब्ध होने की साध्यता कैसे होगी? मालूम नहीं । कर्लमंगलम श्री कंठैय्या जी ने भी 11092 109
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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