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________________ -( सिरि भूवलय नूतन परिष्करण के दो शब्द प्राचीन काल में आदि मानव के लिए अंगीकाभिनय ही भावाभिव्यक्ति का साधन था। इस व्यवस्था ने आगे चल कर चित्राभिव्यक्ति का रूप धारण कर लिया। यह चित्राभिव्यक्ति कोई श्रेष्ठ चित्र कला का प्रतीक नहीं था। आदि मानव ने चट्टानों पर पत्थरों पर दीवारों पर अपने भावों को चित्रों के रूप में व्यक्त किया। इसे मानवशास्त्रज्ञ चित्र लिपि युग pictographic age कहते हैं । मानव के द्वारा बोली का अविष्कार करने के कई वर्षों के बाद लिपि का अविष्कार हुआ। लिपि के साथ संख्या भी अवतरित हुई । मानव जब अपने भावों अनुभावों और अनुभवों को अक्षर रूप में उतारने लगा तब साहित्य का निर्माण हुआ । इसे अक्षर लिपि काव्य कहा जाता है। इसी प्रकार स्पंदित होकर भावों-अनुभावों को भाषा की तरह ही समर्थ रूप से प्रकट करने के लिए संख्या रूपी संकेतों का जन्म हुआ। इनके द्वारा रचित रचना को संख्या लिपि काव्य कह सकते हैं। इस रीति से उपलब्ध संख्या लिपि एकैक आश्चर्य जनक काव्य कुमुदेन्दु विरचित भूवलय है। सिरि भवलय विश्व के आश्चर्यों में से एक है ऐसी घोषणा करने के लिए आगे-पीछे सोचने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि यह एक अपूर्व अन्यादृश, विशिष्ट, संख्या धारित, सांकेतिक, धार्मिक काव्य, जैन धार्मिक काव्य कन्नड अंक लिपि में लिपि बध्द लेकिन विश्व के ७१८ भाषाओं को गर्भ में रख अपने महोन्नति से विश्व के भाषा साहित्य के लिए एक प्रश्न बनकर खडा, विचित्र और विशिष्ट कला कृति है। इसी कारण कवि कुमुदेन्दु इसे सर्व भाषा मयी कर्नाटक काव्य और विश्व काव्य कह कर संबोधित करते हैं और यह सर्वार्थ सिध्दि संपदद निर्मल काव्य। धर्मवलौकिक गणित।। निर्मल बुध्दियन वलंबिसिरुवर। धर्मानुयोगद वस्तु ॥ लेसिनि भजिसुत बरुव निर्मल काव्य। श्री शन गुणितद काव्य।। गिळिय कोगिले दनिकाव्य । “एळेवेण्ण दनियंक काव्य॥ इळे गादि मनसिज काव्य । सुलिपल्ल सुलियद काव्य।। 101
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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