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________________ गुणस्थान कहा जाता है। वे चउदह प्रकार के होते हैं, जिनके नाम निम्न प्रकार हैं- (1) मिथ्यादृष्टि, (2) सासादन, (3) मिश्र, (4) असयंत, (5) देशविरत, (6) प्रमत्त, (7) अप्रमत्त, (8) अपूर्वकारण, (9) अनिवृत्तिकारण, (10) सूक्ष्म साम्पराय, (11) उपशान्त मोह, (12) क्षीणमोह, (13) संयोग-केवली एवं (14) अयोग केवली। ग्राम (ग्राम)-7/1/17 बृहत्कल्पसूत्र (2/1088) के अनुसार ग्राम वह है, जहाँ के निवासियों के लिये 18 प्रकार के कर देने पड़ते थे। आदिपुराण (16/66) के अनुसार ग्राम चारों ओर से बाड़ से घिरा रहता था। .. णयर (नगर)-7/1/17 तिलोयपण्णत्ती (4/1398) के अनुसार नगर वह कहलाता है, जिसके चारों ओर रमणीक गोपुर बने हुए हों। यथा- णयरं चउ गोउरेहिँ रमणिज्जं । मानसार (दसवाँ अध्याय) के अनुसार नगर वह है, जहाँ अनेक जातियों एवं श्रेणियों के लोग निवास करते हों तथा जहाँ सभी धर्मों के धर्मायतन बने हों। पुर-7/1/17 तिलोयपण्णत्ती (4/1398) के अनुसार पुर वह कहलाता था, जो विविध प्रकार की वृत्तियों अर्थात् व्यापारिक समृद्धियों से समृद्ध होता था। यथा- वइपरिवेढो। गुज्जर-4/18/8 इतिहासकारों के अनुसार नवमी-दसवीं सदी के उत्तर भारत में गुर्जर-प्रतिहार वंशी राजाओं ने प्रभावक रूप में शासन किया था। महाकवि श्रीधर ने केवल गुज्जर-(गुर्जर) वंशी नरेश का उल्लेख किया है, इससे प्रतीत होता है कि वह गुजरात का कोई अन्य राजवंश रहा होगा जो कि सातवीं-आठवीं सदी में भृगुकच्छ के आसपास शासन करता था। इस वंश के दो पराक्रमी राजा प्रसिद्ध हैं—(1) राजा दद्द, प्रथम तथा (2) राजा दद्द द्वितीय। इस वंश का अन्तिम शासक जयभट्ट था, जिसे सन् 736 के आसपास अरब के आक्रमणकारी शत्रुओं ने पराजित कर वहाँ अपना अधिकार कर लिया था। चंदिल्ल-7/18/11 दसवीं सदी का मध्य भारत का सुप्रसिद्ध तथा नन्नुक द्वारा संस्थापित एक पराक्रमी एवं कलारसिक राजवंश था। इसने दीर्घकाल तक बुन्देल भूमि पर शासन किया था। इसकी राजधानी खर्जुरवाहक (वर्तमान खजुराहो) थी। इस राजवंश ने जहाँ-जहाँ शासन किया, वह जेजाकभुक्ति के चन्दिल्ल अथवा चन्देल के नाम से प्रसिद्ध हए। इस परम्परा का दसवीं सदी का राजा यशोवर्मन् चन्देल अपने गुणात्मक कार्यों के कारण इतिहास में काफी प्रसिद्ध है। पंचवण्णु सुकेय महाकवि श्रीधर ने बतलाया है कि नट्टल साहू ने दिल्ली में उत्तुंग एवं विस्तृत (पंचरंगी ध्वजा)-1/19/1 प्रांगण वाला एक नाभेय मन्दिर बनवाकर उसके शिखर पर पंच परमेष्ठी अथवा पंच-महाव्रतों की प्रतीक पाँच वर्ण वाली ध्वजा-पताका फहराई थी। इसी को आदर्श मानकर भगवान् महावीर-2500वें परिनिर्वाण वर्ष के समय देश-विदेश की समग्र जैन-समाज ने इसी पंचवर्णी ध्वजा को अपनाया था। ये पाँच वर्ण निम्न प्रकार हैं- (1) गहरा लाल, (2) केशरिया, (3) सफेद, (4) हरा एवं (5) नीला। णाहेय-णिकेय (नाभेय-निकेत)-1/9/1 ढिल्ली निवासी महासार्थवाह साहू नट्टल, जिसकी 46 देशों में व्यापारिक 276 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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