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________________ एक अन्य साक्ष्य यह भी प्राप्त हुआ है कि बिहार प्रान्त के गया एवं रफीगंज (औरंगाबाद) के मध्य कोल्हुआ एवं झारखण्ड स्थित सम्मेद शिखर (पारसनाथ हिल्स) के पर्वत शिखर को जोड़ने वाले पर्वत-खण्ड, बिहार एवं झारखण्ड - प्रान्तीय भूगोल एवं आम जनता की बोली में आज भी 'श्रावक पहाड़' एवं 'प्रचार-पहाड़ के नाम से जाने जाते हैं। इन पर्वतों में उकेरी हुई कुछ पार्श्वमूर्तियों, धरणेन्द्र-यक्ष एवं पद्मावती की मूर्तियाँ एवं उनकी जैन- गुफाएँ भी उपलब्ध हैं। उक्त पूरे प्रदेशों में उक्त सराक जाति निवास करती है, जो सम्भवतः किन्ही राजनैतिक एवं धार्मिक आँधी-तूफानों की भीषण मार सहते-सहते मूल स्थानों को बरबस छोड़कर आज दुर्गति का जीवन जी रही है। वस्तुतः ये पार्श्व के सच्चे अनुयायी अथवा पार्श्वपत्य हैं। इनकी विधिवत् जनगणना नहीं हुई है। फिर भी ऐसा अनुमान किया जाता है कि इनकी संख्या सम्भवतः 15-20 लाख से भी अधिक होगी। वर्तमान में यह सराक जाति- सराक, मॉझी, मण्डल, अधिकारी, चौधरी, आचार्य आदि उपनामों से भी जानी जाती है। इनमें से एक जाति "मारंगकुरु" (पर्वत का देवता) की पूजा करती है तथा वह उक्त पार्श्वनाथ की पहाड़ी को ही "मारंगकुरु" मानती है। राँची एवं सिंहभूम जिलों की सराक जाति तीन विभागों में विभक्त हैं- (1) मूल-सराक (2) सिकरिया-सराक एवं (3) कड़ासी-सराक। वर्तमान में मूल सराक एवं सिकरिया - सराक भी दो भागों में विभक्त हैं। आज भी वे भगवान ऋषभदेव के बताए हुए मार्ग - कृषि करो अथवा ऋषि जीवन व्यतीत करो जैसे नियम के पालन का प्रयत्न करते हैं। और न्यायोचित पद्धति से जीवन-यापन का प्रयत्न करते हैं। आज के समाज-शास्त्री एवं इतिहासकार प्राचीन जैन साहित्य तथा पुरातात्विक साक्ष्यों में संचित बहुआयामी सन्दर्भों के आधार पर इस क्षेत्र में यदि सघन निष्पक्ष शोधकार्य करें, तो उन्हें ईसापूर्व की सदियों के अनेक प्रच्छन्न ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक रोचक तथ्य प्राप्त हो सकते हैं। पार्श्वचरित सम्बन्धी उपलब्ध विविध साहित्य जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि जैनाचार्यों ने पार्श्व के समकालीन लोक- प्रचलित सन्दर्भों, पारम्परिक प्रवचन - वृत्तान्तों तथा लोकानुश्रुतियों के आधार पर पार्श्व के चरित का प्रथमतः त्रिषष्ठिशलाकामहापुरुषचरित के अन्तर्गत एकबद्ध ग्रन्थ के रूप में समस्त त्रेसठ शलाका - महापुरुषों के साथ संक्षिप्त वर्णन किया है। ऐसे ग्रन्थों में प्राप्त प्रकीर्णक तथ्यों को प्रवाहपूर्ण कथानक के रूप में व्यवस्थित किया गया है। इनमें घटना की प्रधानता है । घटनाओं को आलंकारिक काव्यरूपों में ढालने के अवसर सम्भवतः ग्रन्थ-विस्तार के भय से कवियों को प्रायः अल्पमात्रा में ही प्राप्त हुए हैं। इस श्रेणी की रचनाओं में, जिन्हें कि महापुराण के अपरनाम से भी जाना जाता है, अभी तक आचार्य जिनसेन, पुष्पदन्त, शीलांक, वीरवर चामुण्डराय, हेमचन्द्र, दामनन्दि एवं रइधू द्वारा लिखित ग्रन्थ प्रमुख हैं। इनमें से जिनसेन, हेमचन्द्र एवं दामनन्दि के ग्रन्थ संस्कृत में, शीलांक का ग्रन्थ प्राकृत में, चामुण्डराय का ग्रन्थ कन्नड़ में (अद्यावधि अनुपलब्ध) तथा पुष्पदन्त एवं रइधू के ग्रन्थ अपभ्रंश में है। शीलांक द्वारा लिखित प्राकृत महापुराण-चउप्पन्नमहापुरिसचरियं के नाम से प्रसिद्ध है। शीलांक ने शलाका महापुरुषों के अंतिम वर्ग को ध्वंसात्मक प्रवृत्ति के होने के कारण उन्हें मान्यता प्रदान नहीं की, इसलिए 54 महापुरुषों का ही जीवन-चरित लिखा। इसमें सन्देह नहीं कि उक्त ग्रन्थ परवर्त्ती संस्कृत, प्राकृत, कन्नड एवं अपभ्रंश आदि के लेखकों के लिए पार्श्व-चरित सहित अन्य स्वतन्त्र चरित-काव्यों के लेखन के लिए भी प्रेरणा के स्रोत बनें । आलंकारिक, काव्य-शैली के स्वतन्त्र पार्श्व-चरितों में संस्कृत के पार्श्वभ्युदयकाव्य (जिनसेन 9वीं सदी), 1. निर्णयसागर प्रेस बम्बई (सन् 1909 ) से प्रकाशित । 20 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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