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________________ 10 5 करे करेवि सरासणु गुणु लुहेवि णिग्गउ णिरु सिरसररुहु धुणेवि रिउ समुहुँ ढुक्कु केरिसु विहाइ अइ दुणिरिक्खु णं धूमकेउ कुवियाणणु ण पच्चक्ख कालु जोत्तिय हयवरे रहे आरुहेवि ।। रविकित्ति-मंति वयणइँ सुणेवि ।। खय-समय-समुब्भउ भाणु णाइ ।। जज्जल्लमा णं जायवेउ ।। दूसहु णं सणि संगर-रसालु ।। घत्ता- तं पेक्खिवि परबलु थरहरिउ णं कयलीदलु पवण-समाहउ । थक्कउ पेक्खंतहँ सुरयणहँ गलियमाणु परिहरिवि महाहउ ।। 85 ।। 5/6 Prince Pārśwa by his fighting tactices lets down very badly the flock of excited elephants of Yavanrāja. जउणाणउ बलु भीसिवि भरेण रविकित्ति णरेसरु धीरवेवि बावल्लहिँ जोहहिँ खउ करेवि दुवइ— अहवा इउ ण चोज्जु तहो दंसणे जरिउ पत्तणिग्गहो । जाया जसु जयम्मि णामेणवि दूरोसरहि दुग्गहो । । छ । । पीडेवि फणिवइ णियरहभरेण । । करे ससरु सरासणु परिठवेवि ।। धाविउ गयसम्मुहुँ करेवि । । जाति के घोड़ों से जुते हुए रथ पर सवार होकर, अपने सिर रूपी कमल को धुनकर, रविकीर्ति के मन्त्रियों के निवेदन को सुनकर जब उस रणभूमि में ढूँका, तब वह किस प्रकार सुशोभित हुआ ? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि मानों प्रलयकालीन प्रचण्ड सूर्य का ही उदय हुआ हो । योद्धाओं की उस भीड़ में भी वह उसी प्रकार दुर्निरीक्ष्य था, जैसे कि मानों धूमकेतु ही हो, अथवा मानों जाज्वल्यमान जातवेद - ( धगधगाती हुई प्रचण्ड) अग्नि ही हो, अथवा मानों कुपित मुखवाला साक्षात् यमराज ही हो, अथवा मानों युद्ध-रसिक दुस्सह शनीचर ही ( आ गया ) हो । घत्ता - कुमार पार्श्व को समरभूमि की ओर आता देखकर, शत्रुपक्ष उसी प्रकार थर्रा उठा, जिस प्रकार कि पवनाहत कदली पत्र । गलित मान होकर शत्रु पक्ष का सैन्य-समूह अपना युद्ध-कार्य छोड़कर देवगणों की ओर निहारता हुआ स्तम्भित ही रह गया । (85) 5/6 कुमार पार्श्व अपने रण-कौशल से यवनराज के करीन्द्रों के छक्के छुड़ा देता है - द्विपदी —अथवा, संसार में जिस कुमार पार्श्व का नाम लेने मात्र से ही जब दुष्ट ग्रहों तक का नाश हो जाता तब यह कोई आश्चर्य का विषय ही नहीं कि उसके दर्शन - मात्र से ही शत्रु- पक्ष का भी निग्रह न हो गया हो । यवनानी सेना को डराकर वह कुमार पार्श्व अपने रथ के भार से शेषनाग को पीड़ित कर, (अपने मामा - ) राजा रविकीर्ति को धैर्य बँधाकर, हाथ में बाण सहित धनुष को साधकर, बाबले योद्धाओं का क्षय करने हेतु, शत्रुगजों के क्षय करने हेतु उनके सम्मुख झपटा और तीक्ष्ण असिधार द्वारा कितने ही गजकुम्भों का निर्दलन कर उसने कर्कश 100 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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