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________________ हरु-हरि-विरिंचि-पुरंदरो वि तुह भुयवलेण तइयहँ ण कोवि।। अम्हेहिँ मण्णिय ण रिउ कयंत संधाणु ण तह कण्णा वरंतु।। किं सामिण बहुणा भासिएण णियकज्जारंभ पणासिएण।। हण्णइ ण जाम रविकित्ति देव मण्णहु ता अम्हहँ तणिय सेव।। घत्ता- तं णिसुणिवि करुणारसभरिउ पासु कुमारु देउ संचल्लिउ। अक्खोहिणी परिमिय बल सहिउ समरब्भर-सवें जगु हल्लिउ ।। 84।। 5/5 Entry of Prince Parswa into the blood-flooded battle-field. वइ- परियरियउ समंतिसामंतहिँ मंडलियहिँ जिणेसरो। बहुविह धयवडोह जलवारण पच्छाइय दिणेसरो।। छ।। अरि-करिडि-कुंभ-णिद्दलण सीहु कढिय कराल करवाल जीहु।। घणसार धूलि धूसरिय देहु णिय माय सहोयरे बद्धणेहु।। सम्माणदाण पोसिय सवक्खु सपयावलच्छि तासिय विवक्खु ।। दुव्वार-वइरि सारंग बाहु हयसेण तणुरुहु पासणाहु।। गंजोल्लिय-मणु सण्णहे वि गत्तु ताण वि विसालु सेयायवत्तु।। हर (महादेव) हरि (विष्णु) विरंचि (ब्रह्मा), पुरन्दर (इन्द्र) इनमें से कोई भी आपके भुजबल की समानता नहीं कर सकता। इसीलिये हम लोगों ने अपने शत्र यवनराज को न तो कृतान्त (यमराज) माना और न ही अपनी कन्या के वर-रूप में उसके साथ सन्धि ही की है। हे स्वामिन्, अपने कार्यारम्भ को नष्ट करने तथा अधिक बोलने से क्या लाभ? हे देव, राजा रविकीर्ति के जीवित रहते हुए तक की हमारी भी सेवा मानिए। घत्ता- मन्त्रियों का निवेदन सूनकर करुणा रस से भरे हए कुमार पार्श्व देव अपनी अक्षौहिणी-सेना के साथ जब चलने लगे, तब समर-प्रयाण सूचक शब्दों से सारा जगत् हिल उठा। (84) - 5/5 कुमार-पार्श्व का रक्त-रंजित समर-भूमि में प्रवेशद्विपदी— अपने महामन्त्रियों, सामन्तों एवं माण्डलिक राजाओं से घिरे हुए पार्श्व जिनेश्वर ऐसे प्रतीत हो रहे थे, मानों विविध प्रकार के ध्वजपटों और जलवारण-छत्र से ढंका हुआ सूरज ही हो। शत्रु-पक्ष के गज-कुम्भों को विदीर्ण करने में सिंह के समान पार्श्व ने कराल-काल की जिह्वा के समान तलवार म्यान से बाहर निकाल ली। ..... ___ कपूर-रज से धूसरित देह वाले, अपनी माता के सहोदर (मामा) रविकीर्ति के स्नेह से बँधे हुए, स्वपक्ष के लोगों को सम्मानादि-दान से पोषित करने वाले, अपने प्रताप रूपी लक्ष्मी से विपक्ष को संत्रस्त करने वाले, दुस्साध्य शत्रुरूपी हरिणों के लिये व्याध के समान, राजा हयसेन का पुत्र पार्श्वनाथ, रोमांचित कर देने वाले कवच को अपने शरीर पर धारण कर विशाल श्वेतातपत्र को (सिर पर) तानकर, हाथ में धनुष धारण कर, उसकी डोरी को खींचकर, उत्तम पासणाहचरिउ :: 99
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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