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________________ तीर्थंकर पार्श्व के चरित का वर्णन आचार्य विमलसूरि के परवर्ती विभिन्न कालों, विभिन्न स्थानों एवं विभिन्न लोकप्रिय भाषाओं में होता रहा है। उनके दिव्य-चरित की परम्परा को ध्यान में रखते हुए भी कवियों ने कथानक तथ्यों, व्यक्तिगत कुछ नामों तथा नगरियों के नामों एवं कहीं-कहीं कुछ तिथियों में भी सम्भवतः प्रचलित अनुश्रुतियों के आधार पर यत्किचित् परिवर्तन भी किये है। अतः यहाँ पर प्रस्तुत पासणाहचरिउ के आलोक में उनका तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है पार्व, मरुभूति एवं कमठ के भव-भवान्तर जैन धर्म-दर्शन की पहिचान उसके कर्मसिद्धान्त से होती है और कर्मसिद्धान्त ही पुनर्जन्म की रीढ़ है। दोनों का अविनाभावी सम्बन्ध है। प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत एवं कन्नड़ आदि का समस्त प्रथमानुयोग-साहित्य-कर्म-बन्ध एवं पुनर्जन्म के वर्णनों से भरा पड़ा है। शलाकामहापुरुष-चरित साहित्य के अतिरिक्त भी वसुदेवहिण्डी (3-4सदी), समराइच्चकहा (8वीं सदी) तथा गोम्मटसार 10वीं सदी) आदि ग्रन्थ इस विषय के प्रमुख विश्लेषक ग्रन्थ माने जाते हैं। जहाँ तक पार्श्व के पुनर्जन्मों का प्रश्न है, तिलोयपण्णत्ती (दूसरी-तीसरी सदी) में पार्श्व को प्राणत-कल्प से अवतरित बताया है' । यद्यपि यह सूत्र-शैली में ही वर्णित है। समवायांग-सूत्र में भी संक्षिप्त रूप में पार्श्व के पूर्वजन्म का नाम 'सुदंसण' बतलाया गया है, जबकि कल्पसूत्र में यह बतलाया गया है कि पार्श्व प्राणत-कल्प से अवतरे थे। इस आगम-ग्रन्थ में पार्श्व के तीर्थकर-भव का अपेक्षाकृत अधिक सुव्यवस्थित एवं विस्तृत चित्रण मिलता है। रविषेण ने अपने पद्मचरित' में पार्श्व को वैजयन्त-स्वर्ग से अवतरित बतलाया है। परवर्ती ग्रन्थकारों ने अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुसार उक्त ग्रन्थों से तथ्यों को ग्रहण कर उन्हें संक्षिप्त या विस्तृत रूप में चित्रित किया है। ___ पार्श्व के साथ ही मरुभूमि एवं कमठ के भवान्तर भी जुड़े हुए हैं, जिनका विस्तृत वर्णन भी कर्मसिद्धान्त एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त को पुष्ट करने हेतु रोचक शैली में किया गया है। विषय बहुत ही गम्भीर एवं विस्तृत है। इसकी समग्रता का वर्णन स्थानाभाव के कारण यहाँ शक्य नहीं। किन्तु प्रथमानुयोग के कुछ प्रमुख ग्रन्थों के आधार पर प्रस्तुत एक मानचित्र द्वारा संक्षेप में आगे स्पष्ट रूप से बतलाने का प्रयास किया जाएगा। पार्श्व के कुल-गोत्र एवं माता-पिता पार्श्व के वंश का प्रथम बार उल्लेख तिलोयपण्णत्ती में प्राप्त होता है। उसमें वंश को उग्रवंशी बताया गया है। बुध श्रीधर ने पार्श्व के वंश या गोत्र की चर्चा नहीं की है। आवश्यक-नियुक्ति के अनुसार पार्श्व काश्यप-गोत्र के प्रतीत होते हैं क्योंकि इस ग्रन्थ में बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत तथा बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि को गौतमवंश का कहकर शेष तीर्थंकरों को “कासव गुत्त" का कहा गया है । उत्तरपुराण में भी पार्श्व के पिता को काश्यप-गोत्रोत्पन्न बताया गया है | महाकवि पुष्पदंत' ने पार्श्व को उग्रवंशीय कहा है, जबकि देवभद्रसूरि (12वीं शताब्दी) ने आससेण को इक्ष्वाकु-कुलोत्पन्न लिखा है। हेमचन्द कृत त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरितम् तथा श्वेताम्बर-परम्परा में लिखे गए 1. पा. मोदी,, भूमिका, पृ. 29 2. समवायांग 249 3. कल्पसूत्र 140 4. पद्मचरितम् 5. आवश्यक नियुक्ति 338 6. उत्तरपुराण 73/75 7. तिसट्ठि : 94/22-23 8. त्रिषष्ठिशलाका. 93/94 .. क्त 338 प्रस्तावना :: 11
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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