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________________ संस्कृत साहित्य के प्रति प्राचार्यश्री की विशेष अभिरुचि है। अतएव लक्ष्य तथा लक्षण दोनों प्रकार की सरस रचनायें आपकी सफल लेखनी से प्रसूत हुई हैं। प्रस्तुत 'साहित्यरत्नमञ्जूषा' आपकी लाक्षणिक शैली का सरल तथा बोधगम्य ग्रन्थ है। ग्रन्थकार ने प्रस्तुत ग्रन्थ को पाँच परिच्छेदों में विभक्त किया है-१. कथं कवित्वसम्प्राप्तिः ? २. कवेः शिक्षा च कीदृशी ? ३. कश्च काव्यचमत्कारः ? ४. गुणदोषादयस्य के ? ५. कवेः कः सम्प्रदायः ? इन पाँचों परिच्छेदों में क्रमशः १. कवित्व-शक्ति काव्य स्वरूप, २. छन्दोज्ञान सोदाहरण गण समझ सहित, ३. नवरस, रसाभास, भावाभास, ध्वनिकाव्य का संक्षिप्त सारगर्भित सोदाहरण वर्णन, ४. गुण, दोष, रीति तथा अलंकार का सोदाहरण सुन्दर वर्णन, ५. कवि-सम्प्रदाय का ऐतिहासिक वर्णन एवं विभाग तथा साहित्य में प्रचलित अंकलेखनादि पद्धति का सरस प्रतिपादन हुआ है। प्रत्येक परिच्छेद के अवसान में प्राचार्यश्री ने कविहृदय का सरस परिचय देते हुए सारांश कथन किया है; जिसमें आचार्यश्री की सूत्रात्मकसारगर्भित शैली के ( ७६ )
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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