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________________ हैं। अर्थालंकारों में शब्द-परिवर्तन होने पर भी अर्थ में अन्तर नहीं आता है। अर्थालंकारों में उपमा, रूपक, परिकर, भ्रान्तिमान्, दीपक, अप्रस्तुत प्रशंसा, विभावना, अर्थान्तरन्यास, अतिशयोक्ति, व्यतिरेक, अपहनुति, प्रतीप, संदेह आदि प्रसिद्ध हैं। ३. उभयालंकार-जो अलंकार शब्द और अर्थ के आश्रित रहकर काव्य को चमत्कृत करते हैं, उन्हें उभयालंकार कहते हैं । इन्हें मिश्रितालंकार भी कहा जाता है । 'साहित्यरत्नमञ्जूषा' का वैशिष्टय संस्कृत-साहित्य की समृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाली यह काव्यशास्त्रीय कृति सरस, सरल तथा बोधगम्य है। अनसुलझी, उलझी हुई शास्त्रीय-वार्ताओं को, लाक्षणिक रहस्यों को सरल एवम् सरस स्वरूप में प्रस्तुत करना-इस कृति की अनुपम विशेषता है । स्वनामधन्य विद्वन्मूर्धन्य जैनधर्मदिवाकर साहित्यमनीषी परम पूज्य आचार्य विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. एक सफल साहित्यकार हैं । सतत लेखन-स्वाध्याय आदि में व्यस्त रहते हुए आपश्री संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती आदि समृद्ध भाषाओं में सरस एवम् सफल साहित्य-रचना करके वाङ्मय की शोभा बढ़ाते हैं। ( ७८ )
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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