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________________ प्राण के समान प्रतीत होता है और जिसमें कोई अपूर्व ही अभिधा परिस्फुरित होती है; तलवार की धार के पथ पर चलने वाले महान शूरवीरोंके मनोरथ की भाँति, जिस कठिन मार्ग से विदग्ध कवियों ने यात्रा की है; वह अत्यन्त दुस्संचर मार्ग विचित्र मार्ग कहलाता है । प्राचार्यं कुन्तक ने विचित्र मार्ग के वर्णन में जो अलंकारों की स्वाभाविकता का वर्णन किया है, वह ध्वनिकार प्रभावित है । अलंकारों का आहार्य रूप काव्य की सुन्दरता को विकृत कर देता है | विचित्र मार्ग की विचित्रता के कारण पूर्वोक्त चार गुणों के स्वरूप में भी पर्याप्त अन्तर दृष्टिगोचर होते हैं । वस्तुतः श्राचार्य कुन्तक की तर्करणा, विवेचना की नवीन उद्भावना अनुपम है । मध्यम मार्ग - यह मार्ग सुकुमार तथा विचित्र दोनों मार्गों के काव्य- व्यसनी कविजनों का मनोज्ञ, हृदयावर्जक काव्यपथ है, जिसमें दोनों मार्गों की विभूतियों की समान प्रतिस्पर्धा परिलक्षित होती है । सुकुमार तथा विचित्र की सम्मिलित सुषमा सुतराम् यहाँ प्रस्फुटित होती है । मध्यम मार्ग को परिभाषित तथा विवेचित करते हुए ( ६० )
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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