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________________ यदि विचार से समझाने का प्रयास किया जाए, तो मात्र इसी विषय के लिए स्वतन्त्र ग्रन्थ की अपेक्षा प्रतीत होने लगेगी । प्राचार्य ने इस सुकुमार मार्ग के चार गुणों का वर्णन भी अपने 'वक्रोक्तिजीवित' में बड़े ही विस्तार से विवेचनापूर्वक किया है । वे चार गुण हैं १. माधुर्य २. प्रसाद ३. लावण्य ४. आभिजात्य । विचित्र मार्ग-यह मार्ग तलवार की धार पर चलने के समान दुःसञ्चार योग्य है । कुछ विरले पाण्डित्यपूर्ण कवीश्वर ही इस मार्ग से संचरण कर सकते हैं। जहाँ कविप्रतिभा के प्रथम प्रभात के समय शब्द और अर्थ के बीच वक्रता प्रस्फुरित होती है, जहाँ एक ही अलंकार से संतोष न होने पर कविजन हार आदि आभूषणों में जटित विभिन्न मणियों की तरह दूसरे अलंकारों का गुम्फन करते हैं, हारादि आभूषणों में विन्यस्त अनेक मणियों से चमकती हुई किरणप्रभा के बाहुल्य से देदीप्यमान अलंकारों से सुसज्जित करके जैसे युवती को अलंकृत किया जाता है, ठीक उसी प्रकार जहाँ स्वतः प्रकाशमान उपमादि अलंकारों से स्वाभाविक शोभातिशय में विद्यमान अलंकार्य प्रकाशित होता है, जहाँ वक्रोक्ति का वैचित्र्य ही ( ५६ ) ..
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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