SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उससे भाव में अस्पष्टता तथा दुर्बोधता हो जाये । ४. अलंकृत, उदात्त तथा अतिशयोक्तिपूर्ण रचना । स्पष्ट है कि वैदर्भी-मार्ग कोमल, कान्त, परिष्कृत पदावली बद्ध शैली पर जोर देता है तथा रचना की संश्लिष्टता, भावों की प्राञ्जलता, अनुपात एवम् औचित्य को महत्त्वपूर्ण मानता है, जबकि गौड़ीय-मार्ग क्लिष्ट, चमत्कारपूर्ण, शब्दाडम्बर-भित अत्युक्ति पर विशेष बल देता है। दण्डी के बाद आचार्य वामन ने रीति को काव्य के प्रमुख तत्त्व के रूप में स्वीकार किया है। वे स्वीकार करते हैं कि 'रीति काव्य की आत्मा' है ।१ दण्डी के 'मार्ग' शब्द के स्थान पर उन्होंने सम्भवतः प्रथम बार रीति शब्द का प्रयोग किया जो आगे चलकर काव्यशास्त्रों में सर्वमान्य रूप में प्रचलित हुआ। व्युत्पत्ति की दृष्टि से तो मार्ग और रीति दोनों ही शब्द पर्यायवाची सिद्ध होते हैं ।२ १. रीतिरात्मा काव्यस्य १।२।६ -काव्यालंकारसूत्र (सं. जीवानन्द विद्यासागर, कलकत्ता १९२२ । २. वैदर्भादिकृतः पन्थाः काव्ये मार्ग इति स्मृतः । रीङ्गताविति धातोः सा व्युत्पत्त्या रीतिरुच्यते ।। सरस्वतीकण्ठाभरण-१.२.२७
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy