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________________ करती, केवल गुणों का वर्णन करती है । वैसे यह लक्षण अशुद्ध नहीं है क्योंकि गुण और अलंकार के अन्तर्गत वामन ने काव्यगतसौन्दर्य के विभिन्न रूपों को अन्तर्भूत कर उन्हें एक प्रकार से सौन्दर्य के पर्याय के रूप में ही प्रयुक्त किया है - सौन्दर्यमलंकारः । अतएव वामन के लक्षण का संक्षिप्त रूप यह हुआ " सुन्दर ( सौन्दर्यमय ) शब्दार्थ काव्य है" और यह लक्षण बुरा नहीं है । परन्तु वामन ने कदाचित् गुण और अलंकार का जानबूझ कर प्रयोग इसलिये किया है कि उनका रीतिसिद्धान्त मूलतः गुरण और अलंकार पर ही आश्रित है । अतएव अपने वैशिष्ट्य को व्यक्त करने के लिये प्रयोग वामन के लिये अनिवार्य हो गया है । फिर भी कारण चाहे कुछ भी रहा हो यह लक्षण तात्त्विक न रहकर वर्णनात्मक हो गया है- अतएव लक्षणदृष्टि से यह सर्वथा श्लाघ्य नहीं है । आचार्य मम्मट ने दोषरहित गुणयुक्त अलंकार से अलंकृत शब्दार्थमयी रचना को काव्य की संज्ञा दी हैतददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि । आचार्य विश्वनाथ ने रसात्मक वाक्य को काव्य कहा है- वाक्यं रसात्मकं काव्यम् । ( २४ )
SR No.023197
Book TitleSahitya Ratna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1989
Total Pages360
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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